1857 की क्रांति (1857 ki Kranti)

परिचय

1857 की क्रांति (1857 ki Kranti) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसे “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” भी कहा जाता है। यह विद्रोह न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सैन्य विद्रोह था, बल्कि भारतीय जनता की स्वतंत्रता की चिंगारी भी थी।

  • सन् 1857 में उत्तरी और मध्य भारत में एक शक्तिशाली जनविद्रोह उठ खड़ा हुआ और उसने ब्रिटिश शासन की जड़े तक हिलाकर रख दी।
  • आरंभ :- कंपनी के सेना के भारतीय सिपाहियों द्वारा
  • लेकिन जल्द ही व्यापक रूप धारण किया, तब इसमें
    • लाखों-लाख किसान,
    • दस्तकार,
    • जमींदार
    • विद्वान आदि
    • 1 साल से अधिक समय तक लड़ते रहे।

विद्रोह के कारण

  • सन् 1857 के विद्रोह के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व तात्कालिक कारक जिम्मेदार थे । इस विप्लव का तात्कालिक कारण चर्बी वाला कारतूस था।
  • भारत में 1856 के अंत में इनफील्ड राइफलों का प्रयोग शुरू हुआ, जिसमें चर्बी युक्त कारतुसों का उपयोग होता था।

1. आर्थिक कारण:

  • अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि-व्यवस्थाओं से किसानों की हालत बदतर हो गई थी।
  • शिल्पीयों एवं दस्तकारों की बर्बादी :-
  • जमींदारों एवं समाज के मध्यम एवं उच्च वर्ग के लोगों के बीच व्याप्त निर्धनता
  • जमीन का बहुत अधिक लगान के कारण
    • जमीन का मालिकाना अधिकार किसानों के हाथों से निकलकर व्यापारियों और सूदखोरों के हाथों में चला गया
    • किसान बोझ तले दब कर रह गए
  • किसानों के तबाही का नतीजा [ 1770-1857 के बीच ] 12 बड़े तथा अनेक छोटे अकाल

2. सामाजिक कारण:

  • समाज में भय का माहौल था। पूलिस, छोटे अधिकारी तथा नीचली अदालतें भ्रष्टाचार के मामले में बहुत बदनाम रहे।
  • अंग्रेज प्रजातीय श्रेष्ठता के नशे में चूर रहे तथा भारतीयों के साथ अपमान जनक और धृष्टतापूर्ण बर्ताव करते रहे।
  • भारतीय शासक कला और साहित्य के संरक्षक थे और विद्वानों, धर्मगुरुओं तथा फकीरों आदि की सहायता करते रहते। जब इन शासकों के अधिकार जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया तो यह संरक्षण भी यकायक समाप्त हो, गया । फलतः उनमें भी असंतोष की भावना उठने लगी ।

3. सांस्कृतिक कारण:

  • भारतीयों को लगने लगा कि ब्रिटिश शासन उनके धर्म और रीति-रिवाजों को नष्ट कर देने पर अड़ा हुआ है।
  • इसाई धर्म प्रचारकों ने हिन्दू व इस्लाम धर्म की और जनता के पुराने रीति-रिवाजों को खुलेयाम निंदा की
  • अंग्रेजों ने अनेक मामलों में जातीय नियमों की उपेक्षा की।
  • धर्मोपदेशको, पंडितों और मौलवियों के अंदर यह महसूस होने लगा की उनकी भविष्य खतरे में है।

4. विद्रोह का तात्कालिक कारण :-

  • भारतीय सैनि‌कों की शिकायतें:- 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण चर्बी वाला कारतूस था।
  • भारत में 1856 के अंत में इनफील्ड राइफलों का प्रयोग शुरु हुआ, जिसमें चर्बी युक्त कारतूसों का उपयोग होता था।
  • 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर की छावनी में 34 वीं एनआई रेजिमेंट के मंगल पाण्डे ने लेफ्टिनेंट बाग और जनरल ह्यूसन की हत्या कर दी। इस घटना के बाद 8 अप्रैल, 1857 को सैनिक अदालत के निर्णय के बाद फांसी की सजा दी गई।

5. ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष

    • अंग्रेजों की राज्य विस्तार की नीति के कारण भारत के अनेक शासकों एवं सरदारों में उनके प्रति असंतोष व्याप्त हो गया।
    • अंग्रेजों ने उनके साथ सहायक संधि कर ली थी, परंतु अंग्रेज इन संधियों को मनमर्जी से तोड़ देते थे।
    • झांसी के मृत राजा के दत्तक पुत्र को डलहौजी ने उत्तराधिकारी नहीं माना तथा 1854- ई. में झाँसी पर कब्जा कर लिया ।
    • 1851 ई. में पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हुई, तो उसके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेशवा के रूप में मिलने वाली पेंशन देने से अंग्रेजो ने इन्कार कर दिया।
    • मुगल बादशाह को कह दिया गया कि उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों को बाद‌शाह नहीं माना जाएगा !

    विद्रोह का प्रसार :-

    • विद्रोह की शुरुआतः 10 मई 1857, स्थान: मेरठ से हुआ
    • दिल्ली पहुँचकर (11 मई)
    • मेरठ
    • झांसी
    • कानपुर
    • लखनऊ
    • ग्वालियर
    • इलाहाबाद
    • असम
    • आरा
    • संभलपुर
    • बैरकपुर

    विद्रोह के मुख्य केन्द्र व नेतृत्त्वकर्ता :-

    दिल्ली

    • नेताः बहादुर शाह जफ्फर (अंतिम मुगल सम्राट)
    • नेतृत्त्व कर्ता : बस्त खाँ
    • समय: 11 मई 1857
    • विद्रोह के दमनकर्ता : निकलसन, हडसन
    • समपर्ण का दिन : 20 सितम्बर 1857 (जफ्फर को रंगून भेजा गया)

    जगदीशपुर

    • नेताः कुंवर सिंह (1858 में मृत्यु) , अमर सिंह
    • समय : 12 जून 1857
    • विद्रोह के दमकर्ता : मेजर विलियम टेलर
    • समर्पण : दिसम्बर 1858
      • कुँवर सिंह अपने युद्ध-कौशल और छापामार-युद्ध नीति के द्वारा अंग्रेजों का सामना किया

    कानपुर

    • नेता : तात्या टोपे (रामचन्द्र पांडुरंग), नाना साहब (धोंधू पंत)
    • समय : 5 जून 1857
    • विद्रोह का दमनकर्ता : कैम्पबल
    • समर्पण का दिन : 16 दिसम्बर 1857

    नाना साहब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया – 8 लाख का वार्षिक पेंशन बंद ।

    झांसी

    • नेताः रानी लक्ष्मीबाई (बीरगति को प्राप्त- 17 जून 1858)
    • समय : 5 जून 1857
    • विद्रोह के दमनकर्ता : जनरल ह्यूरोज
    • समर्पण का दिन : 1858
    • लार्ड डलहौजी ने गोद-निषेध नियम का लाभ उठाकर आँसी के राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
    • पति की मृत्यु के बाद दामोदर राव नामक एक अल्प व्यस्क बालक को गोद ले लिया ।

    लखनऊ

    • नेताः बेगम हजरत महल, बिरजिस कादिर
    • समय : 4 जून 1857
    • दमनकर्ता : कैम्पबल
    • समपर्ण : 1858

    इलाहाबाद

    • नेता: लियाकत अली
    • समय : जून 1857
    • दमनकर्ता : कॅनल नील
    • समपर्ण : 1858

    बरेली

    • नेता: खान बहादुर खाँ
    • समय : जून 1857
    • दमनकर्ता : आयर, कैम्पबल
    • समर्पण : 1858.

    परिणाम :-

    • 1857 के विद्रोह के बाद भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से निकलकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चला गया।
    • 1 नवम्बर, 1858 को इलाहाबाद में लार्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया की उद्‌घोषणा को पढ़ा, जिसे स्टैनली ने तैयार किया था। इसके बाद गवर्नर जनरल कैनिंग को वायसराय की प्राप्ति हुई ।
    • 1857 की उद्‌‌घोषणा के बाद, पील कमीशन की सिफारिशों के अनुशार भारतीय सैनिकों और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात 5:1 से घटाकर 2:1 कर दिया ।

    विद्रोह के असफलता के कारण :

    क्रांति की विफलता का मुख्य कारण –

    • एकता, संगठन और साधनों की न्यूनता
    • विद्रोही गतिविधियों का कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहना आदि ।

    प्रमुख तथ्य :-

    • 1857 के विद्रोह के समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री : विस्कॉट पामर्स्टन
    • ब्रिटेन की महारानी : विक्टोरिया
    • भारत का गवर्नर जनरल : लार्ड कैनिंग
    • विद्रोह के समय लंदन टाइम्स के संवादाता : डब्ल्यू. एच. रसल

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