वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization)
- वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य को माना जाता है जो मध्य एशिया के रहने वाले थे और वे धीरे-धीरे भारत में समूह बनाकर आते गये।
- सबसे पहले आर्य लोग सप्त सैंधव प्रदेश में आकर बस गए।
- इनके द्वारा स्थापित सभ्यता पूरी तरह से ग्रामीण सभ्यता थी।
- आर्य संस्कृत बोलते थे और अपने आप को श्रेष्ठ मानते थे। इस काल में जो लोग संस्कृत नहीं जानते थे उसे “अनार्य” कहा जाता था।
- ऋग्वेद में आर्य शब्द की चर्चा 36 बार किया गया है।
- ऋग्वेद में अफगानिस्तान की चार नदियों की चर्चा की गई है जो वर्तमान समय में इस निम्नलिखित नाम से जाने जाते हैं –
- कुभा → काबुल नदी।
- कुमु → कुरम नदी।
- गोमती → गोमल नदी।
- सुवास्तु → स्वात नदी।
- ऋग्वेद में कई प्राचीन नदी का नाम लिखा हुआ है जिसे वर्तमान समय में कुछ अलग नाम से जाना जाता है –
प्राचीन नदी | आधुनिक नाम |
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अस्किनी | चिनाव |
शतुद्री | सतलज |
परुष्णी | रावी |
विपासा | व्यास |
सदानीरा | गंडक नदी |
Note :- आर्य एवं अनार्य कबिला के बीच दशराज्ञ युद्ध (परुष्णी नदी) के किनारे हुआ था जिसमें आर्य विजयी हुए थे।
- ऋग्वेद में सर्वाधिक चर्चा सरस्वती नदी का किया गया है।
- ऋग्वेद में मात्र एक बार गंगा नदी की चर्चा एवं मात्र तीन बार यमुना नदी की चर्चा किया गया है।
- आर्य सभ्यता का दक्षिण भारत में विस्तार अगस्त्य ऋषि के द्वारा किया गया था।
- मगध क्षेत्र की चर्चा पहली बार अथर्ववेद में किया गया है। इस वेद में इस क्षेत्र को अछूतों की भूमि या अनार्यों की भूमि कहा गया है।
- यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ सतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में कहा गया है कि राजा विदेह एवं उनके पुरोहित गौतम राहूगन ने आर्य सभ्यता का विस्तार करने का प्रयास किया।
वैदिककालीन राजनीतिक जीवन :-
- इस काल के राजनीतिक जीवन की सबसे छोटी इकाई परिवार होता था जिसे कुल कहा जाता था और कुल के मुखिया को कुलप कहा जाता था।
- कई कुल मिलाकर एक गाँव बनता था और गाँव के प्रधान ग्रामिक होता था।
- कई गाँव मिलाकर विश बनता था और इसका प्रधान विशपति कहलाता था।
- कई विश मिलाकर जन बनता था और जन का प्रधान राजन होता था।
- ऋग्वेद में चर्चा सर्वाधिक 275 बार किया गया है जबकि विश की चर्चा 170 बार किया गया है।
- ऋग्वेद में महाजनपद की चर्चा एक बार भी नहीं किया गया है।
- ऋग्वेद में सभा, समिति एवं विदथ नामक संगठन की चर्चा मिलती है जिसमें सभा की चर्चा 8 बार, समिति की चर्चा 9 बार एवं विदथ की चर्चा सर्वाधिक 122 बार किया गया है।
- सभा उच्च वर्ग / श्रेष्ठ जनता का संगठन था। जबकि समिति सामान्य वर्ग का संगठन था।
- विदथ एवं सभा में पुरुष एवं महिला दोनों शामिल होता था।
- इस काल में राजा को सलाह देने के लिए कई पदाधिकारी होते थे जिसमें सबसे प्रमुख पद पुरोहित का होता था जो राजा का सलाहकार होते थे।
- संगहोत्रा कोषाध्यक्ष होते थे जबकि सन्निधाता राजस्व को वसुलते थे।
- गोवीकर्तन जंगल के प्रधान होते थे।
- ऋग्वैदिक काल में राजा का मुख्य कार्य गाय की खोज करना होता था और इस काल में अर्थव्यवस्था गाय के आधार पर निर्धारित किया जाता था।
- ऋग्वेद में भरत कबिला (कुल का राजा) सुदास था और इसका पुरोहित वशिष्ठ की चर्चा मिलती है। दूसरी तरफ अनार्यों का पुरोहित के रूप में विश्वामित्र की चर्चा मिलती है।
- ऋग्वेद के 10वें मंडल में दशराज्ञ युद्ध की चर्चा मिलती है जिसमें एक तरफ आर्य शाखा थे तो दूसरी तरफ अनार्य शाखा थे। यह युद्ध परुष्णी नदी (रावी नदी) के किनारे हुआ था जिसमें आर्य कुल की विजय हुई थी।
- उत्तर वैदिक काल में लिखे गए अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियों के रूप में चर्चा किया गया है।
वैदिककालीन राजनीतिक जीवन :-
- वैदिककालीन सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी। अतः अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि एवं पशुपालन था। इस काल में लोग गाय को बहुत ही महत्व देते थे।
- शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में 24 बैलों से खींचने वाला हल की चर्चा के साथ-साथ कृषि की विभिन्न विधियों की भी चर्चा की गई है।
- उत्तर-वैदिककाल में लगभग 1000 ई. पू. (B.C.) में लोहे की खोज हो चुकी थी। अतः कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। लोगों की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे मजबूत होने लगी और यही कारण है कि उत्तर वैदिक काल की समाप्ति होते-होते भारत में द्वितीय नगरीकरण की सभ्यता प्रारंभ हो गई। जिसे ही महाजनपद का काल कहा जाता है।
- Note : भारत में लोहे की खोज सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश के अतिरंजीखेड़ा नामक स्थान पर लगभग 1000 ई. पू. (B.C.) हुआ था।
वैदिककालीन सामाजिक व्यवस्था
- इस काल में समाज पितृसत्तात्मक समाज था।
- समाज में जाति व्यवस्था का निर्धारण जन्म के स्थान पर न होकर कर्म के स्थान पर किया जाता था।
- ऋग्वेद के 9वें मंडल में कहा गया है “मैं एक कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और मेरी माता चक्की चलाती है।” अर्थात् इस काल में जाति व्यवस्था कर्म के द्वारा निर्धारित किया जाता था किन्तु उत्तर वैदिक काल के अन्त में जाति व्यवस्था का निर्धारण कर्म के स्थान के आधार पर जन्म ले लिया।
- ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुष सूक्त में चतुर्वर्णों की चर्चा की गई है।
- ऋग्वैदिककालीन समाज में प्रारंभ में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अवसर दिया जाता था। बाल-विवाह का प्रचलन नहीं था किन्तु विधवा विवाह का प्रचलन था।
- इस काल में सतिप्रथा, पर्दा प्रथा, बहुविवाह का प्रचलन नहीं था।
- इस काल में समाज में धार्मिक व्यवस्था में धीरे-धीरे कर्मकाण्ड मजबूती से अपनी स्थिति को बनाता रहा।
- यजुर्वेद में विभिन्न प्रकार के यज्ञ एवं युद्ध की चर्चा की गई है। जबकि अथर्ववेद में विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड, जादू-टोना इत्यादि की चर्चा की गई है।
- वैदिक काल के प्रारंभ में पशुबली की चर्चा नहीं मिलती है किन्तु उत्तर वैदिक काल आते-आते देवताओं को खुश करने के लिए बलिप्रथा का प्रचलन प्रारंभ हो गया।
- ऋग्वैदिक काल में सबसे प्रमुख देवता इन्द्र थे जिन्हें पुरन्दर (कीला को जीतने या भेदने वाला) कहा जाता था।
- दूसरे प्रमुख देवता अग्नि थे जो देवता एवं मनुष्य के बीच मध्यस्थ का काम करते थे।
- तीसरा प्रमुख देवता वरुण थे जो लोगों के नैतिक कार्यों का नियंत्रण करते थे।
- चौथे प्रमुख देवता सोम थे जिसे जंगल का देवता कहा जाता था।
- इन चारों देवता का महत्त्व उत्तरवैदिक काल में धीरे-धीरे कम होने लगा और इसका स्थान प्रजापति (ब्रह्मा) ने ले लिया।
- उत्तर वैदिक काल में विभिन्न प्रकार के दर्शन (Philosophy) की चर्चा मिलती है जो निम्नलिखित है –
दर्शन | प्रवर्तक |
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सांख्य दर्शन | कपिल मुनि |
योग दर्शन | पातंजलि |
न्याय दर्शन | गौतम मुनि |
वैशेषिक दर्शन | कणाद एवं उलूक |
उत्तर मिमांशा (वेदान्त) दर्शन | बादरायन |
पूर्व मिमांशा | जैमिनि |
चार्वक दर्शन (भौतिकवादी) | चार्वक |
- चार्वक दर्शन में ऋण (कर्ज) लेकर घी पीने की बात कही गई है।
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