सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization)

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं, साधारणतः इसे “सिन्धु घाटी की सभ्यता” और “हड़प्पा सभ्यता” के नाम से जाना जाता है। यह विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता हैं। सिन्धु सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक एवं हड़प्पा सभ्यता की काँस्य युगीन सभ्यता के नाम से जाना जाता हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का नाम सिन्धु घाटी सभ्यता इसलिए पड़ा क्योंकि इस सभ्यता का अधिकांश स्थल सिन्धु एवं इसकी सहायक नदी के किनारे बसा हुआ है।

आद्य-ऐतिहासिक काल (Protohistoric Period)

इस काल में मानव द्वारा लिखी गई लिपि को पढ़ा नहीं जा सकता है, किन्तु लिखित साक्ष्य मिले हैं। इस काल के जानकारी के स्रोत भी पुरातात्विक साक्ष्य ही है। इसमें सिंधु सभ्यता को रखते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization)

  • इस सभ्यता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी 1826 ई. में चार्ल्स मेमन के द्वारा दिया गया।
  • हालाँकि 1853 ई. में जॉर्ज कनिंघम ने इस सभ्यता का पहली बार सर्वेक्षण किया।
  • यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। और यह विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता है।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता को आद्य-ऐतिहासिक कालखण्ड (Protohistorical Age) के अंतर्गत रखा गया है।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता को कांस्य-युगीन सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
  • इतिहासकार पीग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को सिन्धु घाटी सभ्यता की जुड़‌वाँ राजधानी कहा है।
  • 1826 चार्ल्स मेसन ने सर्वप्रथम इस पर प्रकाश डाला
  • 1853 – अलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा का सर्वे किया
  • 1856-जॉन बर्टन एवं विलियम बर्टन लाहौर से कराँची के मध्य रेलवे लाइन बिछा रहे थे एवं उन्होंने अनजाने में हड़प्पा की ईंटों का प्रयोग किया।
  • 1856 – अलेक्जेंडर कनिंघम ने दूसरी बार हड़प्पा का सर्वे किया।
  • 1861-भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) की स्थापना
    * गवर्नर जनरल लाई केनिंग के समय, अलेक्जेंडर कनिंघम को ASI का जनक कहलाता है।
  • इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी इसलिए जाना जाता है क्योंकि 1921 ई. में – सर जॉन मार्शल ने दयाराम साहनी को इस सभ्यता के पहले स्थल के रूप मे हड़प्पा में उत्खनन करने हेतु नियुक्त किया।
  • 1924 ई. में सर जॉन मार्शल (भारतीय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक) ने सिन्धु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता के पाए जाने की घोषणा की।
  • कार्बन डेटिंग पद्धति (C14_ पद्धति) के द्वारा इसके कालखण्ड को 2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. तक माना गया है।
  • नोट : तिथि निर्धारण की कार्बन- 14 (C14) पद्धति की खोज अमेरिका के प्रसिद्ध रसायन शास्त्री वी.एफ. लिवि द्वारा 1946 ई. में की गयी थी। इस पद्धति में जिस पदार्थ में कार्बन – 14 की मात्रा जितनी ही कम रहती है, वह उतनी ही प्राचीन मानी जाती है।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम शहरी सभ्यता है। हालाँकि विश्व की प्राचीनतम सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता है जो एक ग्रामीण सभ्यता थी।
  • सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी । सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है; ये हैं- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा, राखीगढ़ी एवं कालीबंगा
  • सारगोन अभिलेख में सिंधु सभ्यता को ‘मेलूहा’ कहा जाता हैं, मेलूहा नाविकों का देश हैं। मेलूहा हाजा पक्षी के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्यसागरीय थे।
  • सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी। नगर दो भागों में विभाजित थे दुर्ग और निचला शहर।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
  • मनोरंजन के लिए मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।
  • इस सभ्यता में स्त्री एवं पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे।
  • इस सभ्यता के अधिकांश स्थल से मातृ देवी की मूर्ति मिली है जो यह प्रमाणित करती है कि इस काल में समाज मातृ सत्तात्मक रहा होगा। इस काल में जातिवाद की चर्चा नहीं मिलती है किन्तु समाज में विभिन्न वर्गों में अन्तर रखा गया है।
  • समाज में सबसे ऊँचा स्थान पुरोहित वर्ग का था। किन्तु प्रशासनिक व्यवस्था वणिक / व्यापारिक वर्ग के हाथों में था।
  • समाज में सबसे नीचा स्थान श्रमिक वर्ग का था।
  • इस काल के लोगों की आर्थिक जीवन कृषि के साथ-साथ वाणिज्य व्यापार पर आधारित था। लोग सिले-सिलाये वस्त्र पहनते थे। जिसमें अधिकांश सुती वस्त्र का उपयोग करते थे।
  • सूती वस्त्र का प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिला है।
  • इस काल के लोग रागी / मरूआ फसल को छोड़कर लगभग सभी फसल से परिचित थे। चावल और गेहूँ उगाने का स्पष्ट प्रमाण लोथल एवं रंगपुर से मिला है।
  • इस काल में लोग कृषि के साथ-साथ पशुपालन का भी कार्य करते थे। इस काल के लोगों का प्रिय पशु वृषभ (कुवड़ वाला बैल / साढ़) था जबकि सबसे पवित्र पक्षी – बत्तख (Duck), सबसे पवित्र नदी – सिन्धु एवं सबसे पवित्र वृक्ष – पीपल को मानते थे।
  • इस काल के लोग धार्मिक क्रियाकलाप के लिए विभिन्न प्रकार के यज्ञों का आयोजन भी करता था। जिसका प्रमाण स्पष्ट रूप से कालीबंगा से मिला है।
  • इस काल में शिव की आकृति अधिक स्थानों से मिला है जो यह प्रमाणित करता है कि इस काल के प्रिय देवता पशुपति शिव थे।
  • इस काल में लोग अन्त्येष्टि / अंत्येष्टि संस्कार में भी विश्वास करते थे। इस काल में यह संस्कार तीन प्रकार से किया जाता था- (1.) दाह संस्कार ( 2.) आंशिक शवाधान (2.) पूर्ण शवाधान।
  • इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता नगर नियोजन प्रणाली थी। इस काल में नगर दो भागों में बँटा रहता था – पूर्वी भाग में सामान्य लोग निवास करते थे जबकि पश्चिमी भाग में ऊँचे वर्ग के लोग निवास करते थे।
  • इस काल के मात्र एक स्थल धौलावीरा से नगर के तीन भागों में बँटे होने का प्रमाण मिला है। जिसमें पूर्वी भाग सामान्य जनता के लिए। पश्चिमी भाग उच्च वर्ग के लोग श्रेष्ठ जन के लिए तथा मध्य भाग में बाजार स्थित होता था।
  • इस काल में मुख्य सड़क से सहायक सड़क समकोण पर आकर मिलती थी। सड़क के दोनों किनारे पलस्तरनुमा नाला होता था जिसे एक मोटे पत्थर से ढक दिया जाता था।
  • इस सभ्यता का एकमात्र स्थल वनवाली था जहाँ से किसी भी प्रकार का नाला का प्रमाण नहीं मिला है और न ही यहाँ के सड़क समकोण पर आकर मिलते थे।
  • इस काल में सबसे चौड़ी सड़क मोहनजोदड़ो से मिला है।
  • इस काल में व्यापार वाणिज्य काफी विकसित था जो सड़क मार्ग एवं सामुद्रिक मार्गों के द्वारा देश के आंतरिक हिस्सों के साथ-साथ बाहरी देशों से भी किया जाता था।
  • इस काल में लोग ताँबा राजस्थान के खेतड़ी एवं बलुचिस्तान से आयात करते थे। जबकि चाँदी, टीन, सीसा अफगानिस्तान एवं ईरान से आयात करते थे। इसके अतिरिक्त सोना की प्राप्ति दक्षिणी भारत एवं अफगानिस्तान से करते थे।
  • इस सभ्यता के लोगों का सर्वाधिक विदेशी व्यापार मेसोपोटामिया से होता था क्योंकि मेसोपोटामिया से प्राप्त अभिलेखों में “मेलुहा” शब्द का प्रयोग किया गया है जो इसी सभ्यता के लिए प्रयोग में लाया गया है।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता एवं मेसोपोटामिया के सभ्यता के बीच कई स्थल का प्रमाण मिला है, जैसे – दिलमुन, माकन एवं उर तीन महत्वपूर्ण स्थल मिले हैं। इस ‘उर’ नामक स्थल को दोनों सभ्यता का प्रवेश द्वारा माना गया है।

सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार :-

  • सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है है।
  • यह भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में फैली हुई है।
  • यह त्रिभुजाकार सभ्यता है।
  • यह उत्तर में “मांडा” (जम्मू कश्मीर) तक, दक्षिण में “दैमाबाद” (महाराष्ट्र) तक, पूर्व में “आलमगीरपुर” (उत्तरप्रदेश) तक और पश्चिम में “सुत्कागेंडोर” (पाकिस्तान) तक फैली हुई थी।

सिन्धु घाटी सभ्यता का काल :-

  • समय का निर्धारण कार्बन डेटिंग पद्धति (C14_ पद्धति) से किया जाता है।
  • 2600-1900 BC → नई NCERT के अनुसार
  • 2350-1750 BC → पुरानी NCERT के अनुसार
  • 3250-2750 BC → सारगौन अभिलेख के अनुसार (म. एशिया)

प्रमुख स्थल

हड़प्पा

  • स्थिति : मोंटगोमरी जिला (PB, Pak.) , वर्तमान में शाहीवाल जिले में है।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: दयाराम साहनी (1921 ई.), माधोस्वरूप वत्स (1926 ई.), व्हीलर (1946 ई.)
  • नदी : रावी नदी के तट पर
प्राप्त वस्तुएँ/खोज :-
  • R-37 कब्रिस्तान
  • विदेशी की कब्र
  • इक्का गाड़ी
  • श्रृंगार पेटिका
  • स्वास्तिक का निशान
  • नदी के तट पर 12 अन्नागार मिलते हैं जो दो लाइनों में है।
  • पास में अनाज साफ करने का चबूतरा मिलता है।
  • पास में श्रमिक आवास भी मिलते हैं।

मोहनजोदड़ो

  • स्थिति : पाक के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: राखलदास बनर्जी (1922 ई.), मैके (1927 ई.), व्हीलर (1930 ई.)
  • नदी : सिन्धु
  • 1922 – सर जॉन मार्शल ने राखालदास बनर्जी को मोहनजोदड़ो का उत्खननकर्ता नियुक्त किया ।
  • मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ = मृतकों का टीला
प्राप्त वस्तुएँ/खोज :-
  1. विशाल स्नानागार
    • आकार :-39 X 23 X 8 ft
    • इसके उत्तर व दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हुई है
    • इसमें बिटुमिनस का लेप किया गया है।
    • इसके उत्तर दिशा में 6 वस्त्र बदलने के कक्ष है।
    • तीन तरफ बरामदे है।
    • बरामदे के पीछे कई कक्ष बने हुए हैं।
  2. जलापूर्ति हेतु कुँआ भी बना हुआ है।
  3. सीढ़ियों के साक्ष्य भी मिलते हैं।
  4. सर जॉन मार्शल ने इसे तात्कालिक समय की आश्चर्यजनक इमारत कहा है।
  5. विशाल अन्नागार
  6. महाविद्यालय के साक्ष्य
  7. सूती कपड़े के साक्ष्य
  8. हाथी का कपालखण्ड
  9. नर्तकी की मूर्ति जो धातु की बनी हुई है।
    • यह नग्न है।
    • इसने एक रहाथ में चूड़ियाँ पहन रखी है।
  10. पुरोहित राजा की मूर्ति जो ध्यान की अवस्था में है।
    • इसने शॉल ओढ़ रखी है जिस पर कशीदाकारी का कार्य किया गया. है।
  11. यहाँ से मेसोपोटामिया की मुहर मिलती है।

लोथल

  • स्थिति : गुजरात का अहमदाबाद जिला।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: S.R. राव (1953-54 ई.)
  • नदी : भोगवा
  • यह एक व्यापारिक नगर था ।
प्राप्त वस्तुएँ/खोज :-
  1. यहाँ से गोदीवाड़ा (Dockyard) मिलता है।
    • यह सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी कृति है।
  2. मनके (Bead) बनाने का कारखाना
  3. चावल के साक्ष्य
  4. फारस की मुहर जो गोलाकार बटननुमा है।
  5. घोड़े की मृण्मूर्तियाँ
  6. चक्की के दो पाट
  7. घरों के दरवाजे मुख्य मार्ग पर खुलते हैं [ एकमात्र]

धौलावीरा

  • स्थिति : गुजरात का कच्छ जिला।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: जे.पी. जोशी (1967-1968 ई.), रवीन्द्र सिंह विष्ट (1990-91 ई.)
  • नदी : लूनी
प्राप्त वस्तुएँ/खोज :-
  • यह शहर तीन भागों में विभाजित थे :- (ⅰ) पूर्व (ⅰⅰ) मध्य (ⅲ) पश्चिम
  • यहाँ से 16 कृत्रिम जलाशय मिलते हैं।
  • स्टेडियम के साक्ष्य
  • सूचना पट्ट जो पॉलिशयुक्त है।

चन्हुदड़ो

  • स्थिति : पाक का सिंध प्रांत नवाब शाह जिला।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: मैके (1925), एन.जी. मजुमदार (1931 ई.)
  • नदी : सिन्धु
  • यह एक औद्योगिक नगरी थी।
प्राप्त वस्तुएँ/खोज :-
  • अलंकृत हाथी
  • खिलौना
  • लिपिस्टिक व वक्राकार ईंटें मिली।
  • मनके बनाने के कारखाने मिलते हैं।
  • कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करने के साक्ष्य

सुरकोटड़ा

  • स्थिति : कच्छ, गुजरात।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: जगपति जोशी (1972-75 ई.)
  • नदी : भोगुवा
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- घोड़े की हड्डियाँ
  • सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों को घोड़े का ज्ञान नहीं था।

कालीबंगा

  • स्थिति : हनुमानगढ़ जिला, राजस्थान।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: अमलानंद घोष (1951 ई.), B.V, Lal, बी.के. थापर (1961)
  • नदी : घग्घर
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- बेलनाकार मुहरें, हल के निशान (जुते हुए खेत के साक्ष्य), अलंकृत ईंटों का प्रयोग, युगल समाधियाँ

रंगपुर

  • स्थिति : काठियावाड़ जिला, गुजरात।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: रंगनाथ राव (1953-54 ई.)
  • नदी : मादर
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- धान (चावल) की भूसी के ढेर, कच्ची ईंटों के दुर्ग, मृदभाण्ड

कोटदीजी

  • स्थिति : सिंध प्रांत का खैरपुर।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: फजल अहमद (1953)
  • नदी : सिन्धु
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- वाणाग्र, काँस्य की चूड़ियाँ, धातु के उपकरण

आलमगीरपुर

  • स्थिति : मेरठ, उत्तर प्रदेश।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: यज्ञदत शर्मा (1953-56)
  • नदी : हिण्डन
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- सिरेमिक उत्पाद, मृदभाण्ड की मूर्तियाँ

दैमाबाद

  • स्थिति : अहमदनगर, महाराष्ट्र।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: एम.एन. देशपांडे (1958-59), एस. आर. राव (1975-76)’, एम.ए. साली (1978-79)
  • नदी : प्रवरा
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- धातु का रथ

सूत्कागेंडोर

  • स्थिति : पाक के मकरान में समुद्र तट के किनारे।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: ऑरेल स्टाइन (1927 ई.)
  • नदी : दाश्क
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- ताँबे की कुल्हाड़ी, मनुष्य की अस्थि राख से भरा बर्तन ।

रोपड़

  • स्थिति : रोपड़ जिला, पंजाब।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: यज्ञदत शर्मा (1953-56 ई.)
  • नदी : सतलज
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- कृषि, गेहूँ, चावल के साक्ष्य

बनवाली

  • स्थिति : हिसार जिला, हरियाणा।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: रवीन्द्र सिंह विष्ट (1974 ई.)
  • नदी : रंगोई
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- तिल व सरसों का ढेर, अच्छे किस्म के जौ, सड़क व नालियों के अवशेष, सेलखड़ी व पकाई मिट्टी की मुहरें, मिट्टी से बने हल का साक्ष्य।

सोल्काह

  • स्थिति : द. ब्लूचिस्तान।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: जॉर्ज डेल्स (1962 ई.)
  • नदी : शादीकौर
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- परिपक्व बस्ती व विलासिता के सामान का व्यापार

राखीगढ़ी

  • स्थिति : हिसार जिला, हरियाणा।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: रफीक मुगल, अमरेन्द्र नाथ (1997-99)
  • नदी : घग्घर
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- चबूतरे पर बनी अग्निवेदिका, मिट्टी के मनके

देसलपुर

  • स्थिति : कच्छ, गुजरात।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: 1963-64 ई., पी.पी. पाण्डया, एम. के. ढाके, के. बी. सुन्दरराजन
  • नदी : बामू-चेला
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- विशाल दीवारों वाला भवन जिसमें छज्जे वाले कमरे मिले।

कुनाल/कुणाल

  • स्थिति : हरियाणा।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: श्री जे एस खत्री व श्री एम आचार्य
  • नदी : कोसी
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- चाँदी के दो मुकुट।

रोजदी

  • स्थिति : सौराष्ट्र, गुजरात।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: 1982-95 ई. तक (7 बार उत्खनन किया)
  • नदी : भादर
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- मुकुट, गेहूँ के साक्ष्य।

मीताथल

  • स्थिति : भिवानी, हरियाणा।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: सूरजभान (1968 ई.)
  • नदी : चौटांग व यमुना नदी के मध्य
  • प्राप्त वस्तुएँ/खोज :- चाँदी के आभूषण व बर्तन, लम्बी सुराहियाँ।

मांडा

  • स्थिति : जम्मू-कश्मीर।
  • उत्खननकर्ता व खोजकर्ता: जे.पी. जोशी (1976-77)
  • नदी : चिनाब

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारण

1750 ई. पू. तक आते-आते इस सभ्यता का पतन होने लगा जिसके लिए विद्वानों ने कई कारण को बताया है। जैसे –

इतिहासकार – के अनुसार कारण
गार्डन चाइल्ड व मॉर्टिमर व्हीलरआर्यों का आक्रमण
S.R. राव, सर जॉन मार्शल व मैकेबाढ़
सर जॉन मार्शलप्रशासनिक शिथिलता
अमलानन्द घोषजलवायु परिवर्तन
U.R. केनेडीप्राकृतिक आपदा
माधोस्वरूप वत्सनदियों के रूख बदलने से

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