GK: जैन धर्म | Jainism GK

यंहा पर जैन धर्म (jainism) से संबंधित बहत्वपूर्ण GK है जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है ।

jainism, जैन धर्म, जैन धर्म gk, jain dharm gk, jainism gk,

जैन धर्म ( Jainism ) GK

  • जैन शब्द संस्कृत के “जिन्” शब्द से बना हुआ है जिसका अर्थ है इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला।
  • जैन धर्म का मुख्य केन्द्र बिन्दु ‘अहिंसा’ था।
  • इस धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे। या जैन धर्म के आदि प्रवर्तक ऋषभदेव थे। इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। अर्थात् जैन धर्म लगभग 1500 ई.पू. का है। इसकी प्राचीनता ऋग्वैदिककालीन है।
  • जैन धर्म के प्रवर्तक को तीर्थकर कहा जाता है।
  • जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकर हुए। जिन्होंने समय-समय पर जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किए।
  • ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे।
  • तीर्थंकर का अर्थ होता है, दुःख से परे संसार रूप सागर को पार कराने वाला।
  • ऋषभदेव हिमालय पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किए थे।
  • जैन धर्म में 23वें एवं 24वें तीर्थंकर ऐतिहासिक पुरुष माने जाते हैं।
  • जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ (पारसनाथ) थे जिन्होंने निग्रंथ सम्प्रदाय की स्थापना की थी। इनके अनुयायी भी निग्रंथ (बँधनरहित) कहलाते थे।
    • इनका जन्म वाराणसी के राजा अश्वसेन के यहाँ हुआ था जो इच्छवाकु वंश से संबंधित थे।
    • इन्हें झारखण्ड के सम्मेद शिखर पर ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस कारण सम्मेद शिखर का नाम पारसनाथ की चोटी हो गया।
    • ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्होंने चतुरायण धर्म दिया जो निम्नलिखित है –
      • (i) झूठ न बोलना। (Non Lying) = सत्य
      • (ii) धन संग्रह न करना। (Non Possession) = अपरिग्रह
      • (iii) चोरी न करना। Astey (Non Stealing) = अस्तेय
      • (iv) हिंसा न करना। (Non Injury) = अहिंसा
  • पार्श्वनाथ महावीर स्वामी से 250 वर्ष पहले हुए। महावीर स्वामी के माता-पिता भी निग्रन्थ सम्प्रदाय के अनुयायी थे।
  • जैन धर्म का मुख्य केन्द्र बिन्दु ‘अहिंसा’ था।

महावीर स्वामी

  • जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। इन्हे जैन धर्म के वास्तविक कहते हैं ।
  • महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. में कुंड ग्राम (बिहार) में हुआ था।
  • इनके बचपन का नाम वर्धमान था।
  • इनकी पत्नी यशोदा थी।
  • इनकी बेटी प्रियदर्शनी (अन्नोज्जा) थी तथा दामाद जमालि था।
  • इनके पिता सिद्धार्थ थे जो कुंडग्राम के ज्ञात्रिक वंश के शासक (राजा) थे।
  • इनकी माता त्रिशला थी। जो लिच्छिवी नरेश चेतक की बहन थी। इनके बड़े भाई नंदिवर्धन थे।
  • 30 वर्ष की आयु में इन्होंने अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से आज्ञा लेकर गृह त्याग दिए।
  • 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद बिहार में जम्भिय ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के किनारे एक शाल वृक्ष (बरगद) के नीचे इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
  • वर्तमान में जाम्भिक ग्राम की पहचान हजारीबाग के समीप पारसनाथ की पहाड़ी तथा ऋजुपालिका नदी की पहचान दामोदर नदी की सहायक नदी बराकर नदी के रूप में किया जाता है।
  • ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्हें कैवलीन, जीन या निग्रोथ कहा गया। जीन का अर्थ होता है, विजेता जबकि निग्रोथ का अर्थ होता है, बंधन से मुक्त।
  • ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने अपना पहला धर्मोपदेश राजगृह में बराकर नदी के तट पर विपुलचल पहाड़ी में दिया।
  • महावीर स्वामी का प्रथम भिक्षु उनका दामाद जमालि बना।
  • प्रथम भिक्षुणी चंदना बनीं जो चम्पा नरेश दधिवाहन की पुत्री थीं।
  • इन्होंने पहला उपदेश राजगीर में बितुलाचल पहाड़ी पर बराकर नदी के तट पर प्राकृत (अर्द्धमगही) भाषा में दिया था। जबकि अंतिम उपदेश पावापुरी में दिया।
  • महावीर स्वामी के प्रधान शिष्यों को गणधर कहा जाता था। इनकी संख्या 11 थी।
  • इन 11 गणधरों का उल्लेख आवश्यक निर्मुक्ति एवं आवश्यक चूर्णि नामक ग्रंथों में मिलता है।
  • महावीर स्वामी ने प्राकृत भाषा में अपने धर्म का प्रचार किया।
  • लिच्छिवि नरेश चेटक, चम्पा नरेश दधिवाहन एवं मगध सम्राट अजातशत्रु महावीर स्वामी के शिष्य बने।
  • महावीर स्वामी की मृत्यु 72 वर्ष की उम्र में बिहार में पावा के शासक सास्तिपाल के महल में हुई।
  • जैनधर्म के त्रिरत्न – महावीर स्वामी ने त्रिरत्न दिए जो निम्नलिखित हैं-
    • सम्यक् ज्ञान (Right knowledge): जीव एवं अजीव के वास्तविक स्वरूप को जानना अर्थात् जैन सिद्धान्तों का पूर्ण ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है।
    • सम्यक् दर्शन (Right believe): जैन तीर्थंकरों एवं उनके बताये गये मार्गों पर पूर्ण विश्वास करना ही सम्यक श्रद्धा या सम्यक दर्शन है।
    • सम्यक् आचरण (Right action): अच्छे कर्मों को करना तथा बुरे कर्मों का त्याग ही सम्यक् आचरण है।
  • भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने मतों के प्रचार-प्रसार के लिए एक संघ की स्थापना किए जिसमें 11 अनुयायी थे।
  • महावीर स्वामी ने ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जिस कारण वे मूर्तिपूजा और कर्मकांड का विरोध किए। अतः इन्हें अनेश्वरवादी भी कहा जाता है।
  • इन्होंने पुनर्जन्म को माना और पुनर्जन्म का सबसे बड़ा कारण आत्मा को बताया। आत्मा को सताने के लिए इन्होंने कहा कि मोक्ष प्राप्ती के बाद पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाएगी।
  • महावीर स्वामी ने अहिंसा पर सर्वाधिक बल दिया, जिस कारण उन्होंने कृषि तथा युद्ध पर प्रतिबंध लगा दिए।
  • महावीर स्वामी के दिए गए उपदेशों को चौदह पूर्वी नामक पुस्तक में रखा गया जो जैन धर्म की सबसे प्राचीन पुस्तक है।
  • महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए।
  • महावीर ने अपने उपदेश में अनेकांतवाद की चर्चा किए।
  • 72 वर्ष की अवस्था में 468 ई.पू. पावापुरी में इनकी मृत्यु (निर्वाण) हो गई।
  • पावापुरी उस समय मल्ल गणराज्य के अधीन था। जिसका शासक हस्तपाल था।
  • महावीर स्वामी के बाद प्रथम उपदेश देने वाला आर्यसूधर्मा को घोषित किया गया था।
  • भद्रबाहु तथा स्थूलबाहु इनके दो सबसे प्रिय अनुयायी थे।
  • मौर्य काल में मगध पर 12 वर्षीय भीषण अकाल पड़ा जिस कारण भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ दक्षिण भारत में कर्नाटक चले गए। इन्हीं के साथ चन्द्रगुप्त मौर्य आये थे। जिसने कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में संलेखना (संथारा) से प्राण त्याग दिये।
  • इस भीषण अकाल में भी स्थूलबाहु तथा उसके अनुयायी मगध में ही रूके रहे। जब अकाल खत्म हो गया तो भद्रबाहु मगध लौट आया। किन्तु इन दोनों में विवाद हो गया।
  • भद्रबाहु के नेतृत्व वाले लोग निर्वस्त्र रहते थे, जिन्हें दिगम्बर कहा गया।
  • जबकि स्थूलबाहु के नेतृत्व वाले लोग श्वेत वस्त्र धारण करने लगे। जिसे श्वेताम्बर कहा गया।
  • जैन धर्म के विस्तृत प्रचार के लिए 2 जैन संगीतियाँ हुई हैं।
    • पहली जैन संगीति :- यह 300 ई.पू. पाटलीपुत्र में हुई जिसकी अध्यक्षता स्थूलबाहु ने किया। उसी में भद्रबाहु ने 12 अंग नामक पुस्तक की रचना की।
    • द्वितीय जैन संगीति :- यह छठी शताब्दी में गुजरात के वल्लभी में हुई। उसकी अध्यक्षता देवाधिक्षमाश्रमण ने किया। उसी संगीति में 12 उपांग की रचना की गई।
  • जैन साहित्य को आगम कहते हैं।
  • जैन भिक्षु के निवास को वसदे कहा गया है।
  • जैन तीर्थंकरों के जीवणी भद्रबाहू द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
  • अनुव्रत सिद्धांत जैन धर्म से संबंधित है।
  • स्यादवाद, अनेकांतवाद, सप्तशृंगी ज्ञान, जीन, निग्रोथ, तीर्थंकर, कैवल्य सभी का संबंध जैन धर्म से है।
  • जैन धर्म मानने वाला प्रमुख राजा- अजातशत्रू, उदयिन, वादराज, चंद्रगुप्त मौर्य, खारवेल, राष्ट्रकूट, अमोघवर्ष, चंदेल शासक।
  • जैन मंदिर हाथी सिंह गुजरात राज्य में स्थित है।
  • प्रसिद्ध जैनी जलमंदिर बिहार राज्य के पावापुरी में स्थित है।
  • मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था।
  • मथुरा कला का संबंध जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा हिंदू धर्म से है।
  • जैन धर्म सर्वाधिक व्यापारी वर्ग के बीच फैला था।
  • महावीर के अनुयायियों को निग्रंथ के रूप में जाना जाता था।
  • महावीर के मुख्य शिष्य को गंधर कहा जाता था।
  • महावीर के धार्मिक उपदेशों का संकलन पूर्वा नामक पुस्तक में है।

पंचव्रत

महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को पाँच शिक्षाओं के पालन पर बल दिया है।

  • ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्होंने पारसनाथ द्वारा प्रारंभ चतुरायन धर्म ब्रह्मचर्य शब्द जोड़कर पंचायन धर्म दिया जो निम्नलिखित हैं-
जैन धर्म के पंचायन धर्म
1.अहिंसाजान-बूझकर या अनजाने में भी किसी प्रकार की हिंसा नहीं करना।
2.सत्यसदा सत्य बोलना।
3.अस्तेयकिसी व्यक्ति की कोई वस्तु बिना उसकी इच्छा के ग्रहण नहीं करना न ऐसी कोई इच्छा करना।
4.अपरिग्रहकिसी प्रकार का संग्रह नहीं करना।
5.ब्रह्मचर्यब्रह्मचर्य व्रत का सख्ती से पालन करना।
  • पंचव्रतों में पहले चार शिक्षायें पार्श्वनाथ द्वारा दी गई हैं। जबकि महावीर स्वामी ने केवल ब्रह्मचर्य को जोड़ दिया।
  • भिक्षुओं को ये 5 शिक्षायें ‘पंचमहाव्रत’ के रूप में हैं अर्थात् कठोरता से इनका पालन करना होगा।
  • श्रावकों (गृहस्थों) के लिए ये 5 शिक्षायें ‘पंचअणुव्रत’ के रूप में है अर्थात् आंशिक रूप से पालन करना है।
  • जैन धर्म के अनुसार एक भिक्षु में भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी सहते हुए तपस्या करने की क्षमता या योग्यता होनी चाहिए। इसे ही ‘परिषा’ कहा गया है।
  • जैन धर्म में श्रावकों को निर्देश दिया गया है कि यदि वे किसी महान संकट से छुटकारा पाने में असमर्थ हैं तो उन्हें भोजन-पानी का त्याग कर प्राणों का अंत कर देना चाहिए इसे ही जैन धर्म में ‘संल्लेखना’ कहा गया है।
  • जैन धर्म इस रूप में अनिश्वरवादी है कि वह देवताओं को स्वीकार करता है लेकिन विश्व व्यवस्था में उसका कोई योगदान स्वीकार नहीं करता।
  • जैन धर्म के अनुसार विश्व शाश्वत है। यह अनेक चक्रों में विभक्त है। प्रत्येक चक्र में दो अवधियाँ हैं 1. उत्सर्पिणी (विकास की अवधि) 2. अवसर्पिणी (..ह्रास… की अवधि)। इन चक्रों में 24 तीर्थंकर सहित 63 शलाकापुरुष (महान पुरुष) निवास करते हैं।
  • जैन धर्म स्यादवाद के सिद्धांत को स्वीकार किया। स्यादवाद कहने वाले के कथन की एक ऐसी शैली है जिससे कथन का गुणात्मक अभिप्राय प्रकट होता है। असत्य भाषण एवं वैचारिक मतभेदों से बचने के लिए स्यादवाद को जैन धर्म में स्थान दिया गया है।
  • इन द्रव्यों को अस्तिकाय (जो स्थान घेरता है) एवं अनस्तिकाय (जो स्थान नहीं घेरता) दो भागों में विभाजित किया गया है।
  • अस्तिकाय के अन्तर्गत जीव एवं अजीव आते हैं। अजीव के अन्तर्गत धर्म, अधर्म, पुद्गल एवं आकाश में चार तत्व है।
  • अनस्तिकाय के अन्तर्गत काल आता है।
  • इस प्रकार जैन धर्म के अनुसार जगत का निर्माण कुल छह पदार्थों से माना जाता है।
जैन धर्म की पाँच श्रेणियाँ
1.तीर्थंकरवह जिसने मोक्ष की प्राप्ति की हो।
2.अर्हतवह जो निर्वाण की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।
3.आचार्यजैन-भिक्षुओं के समूह का प्रमुख
4.उपाध्यायजैन धर्म का शिक्षक
5.साधुसारे जैन-भिक्षु

निर्वाण प्राप्ति का सिद्धान्त

  • जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव को अपने-अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
  • कर्मफल से विमुक्ति ही निर्वाण (मोक्ष) है। जैन धर्म में मृत्यु के बाद निर्वाण की प्राप्ति होती है।

प्रमुख जैन मंदिर

  1. मौर्यकाल में मथुरा जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था।
  2. कर्नाटक में चामुंड शासकों ने गोमतेश्वर का जैन मंदिर बनवाया जिसे बाहुबली का मंदिर कहते हैं।
  3. मध्यप्रदेश में चंदेल शासकों ने खजुराहों में जैन मंदिर बनवाया। जिसमें बाहुबली की मूर्ति (गोमतेश्वर की मूर्ति) है।
    • Note : खजुराहों हिन्दु और जैन दोनों का पवित्र स्थल है। जबकि अजंता बौद्ध, जैन और हिन्दु तीनों का पवित्र स्थल है।
    • खजुराहों में जैन मंदिर का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।
  4. राजस्थान में माऊंट आबु पहाड़ी पर दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मंदिर, विमलशाह के सामंत (अधिकारी) वस्तुपाल तथा तेजपाल के द्वारा बनाया गया है।

जैन संघ में प्रथम फूट

  • जैन संघ से अलग होने वाला प्रथम व्यक्ति महावीर स्वामी का दामाद जमालि था।
  • महावीर स्वामी के ज्ञान प्राप्ति के 12वें वर्ष में जमालि क्रियमाणकृत अर्थात् ‘कार्य प्रारम्भ करते ही कार्य पूरा’ सिद्धान्त के कारण जैन संघ से अलग हो गया।

जैन संघ में विभाजन

  • हेमचन्द्र द्वारा रचित परिशिष्टपर्वन नामक ग्रंथ से पता चलता है कि मौर्य शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में मगध में 12 वर्षों का अकाल पड़ा। अकाल के समय भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन भिक्षुओं का एक दल मैसूर में श्रवणबेलगोला क्षेत्र में चला गया, जबकि स्थूलभद्र के नेतृत्व वाला जैन साधुओं का दल यहीं रुका रहा।
  • इस प्रकार जैन धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया।
    • 1. श्वेताम्बर सम्प्रदाय – स्थूलभद्र के नेतृत्व में उनके अनुयायी श्वेत वस्त्र धारण करने के कारण श्वेताम्बर कहलाये।
    • 2. दिगम्बर सम्प्रदाय – भद्रबाहु के नेतृत्व में उनके अनुयायी निर्वस्त्र रहने के कारण दिगम्बर कहलाये।

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय में अन्तर

श्वेताम्बरदिगम्बर
इसे स्थूलबाहु ने प्रारम्भकियाइसे भद्रबाहु ने प्रारम्भकिया।
ये सफेद वस्त्र पहनते थेये निर्वस्त्र रहते थे
महिलाओं को मोक्ष मिल सकता हैमहिलाओं को मोक्ष नहीं मिल सकता
19 वें तीर्थकर मल्लीनाथ महिला थी।19वें तीर्थकर मल्लिनाथ पुरुष थे।
इसके अनुसार महावीर स्वामी विवाहित थे।इसके अनुसार महावीर स्वामी अविवाहित थे।
इनके अनुसार ज्ञान प्राप्ति के बाद भी भोजन आवश्यक है।इनके अनुसार ज्ञान प्राप्ति के बाद भोजन आवश्यक नहीं है।

जैन संगीतियाँ

  • किसी भी धर्म की बिखरी हुई परम्पराओं को एक जगह संकलित करने के उद्देश्य से संगीतियों (धर्माचार्यों का सम्मेलन) का आयोजन किया जाता है।
  • प्रथम जैन संगीति का आयोजन चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में पाटलिपुत्र में हुआ। इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे।

जैन धर्म के विनाश के कारण

  1. कठिन भाषा
  2. कठोर नियम
  3. महिलाओं का असम्मान
  4. राजाओं का संरक्षण न प्राप्त होना।
  5. निवस्त्र रहना
  6. ब्रह्मचर्य रहना

प्रमुख जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्ह

क्र.सं.तीर्थंकर का नामचिह्न
1.ऋषभदेववृषभ (बैल)
2.अजीतनाथहाथी
3.संभवनाथअश्व
4.अभिनंदननाथकपि ( बंदर )
5.सुमतिनाथक्रौंच (कौवा)
6.पद्मप्रभूकमल
7.सुपार्श्वनाथस्वास्तिक
8.चन्द्रप्रभुचन्द्रमा
9.पुष्पदंत (सुविधिनाथ)मकर (मगरमच्छ)
10.शीतलनाथश्रीवत्स (आशीर्वाद सूचक हाँथ )
11.श्रेयांसनाथगैंडा
12.वासुपूज्यनाथमहिष (भैंसा)
13.विमलनाथवाराह
14.अनंतनाथश्येन (गरुड़)
15.धर्मनाथवज्र
16.शांतिनाथमृग
17.कुन्थुनाथअज
18.अरनाथमीन
19.मल्लिनाथकलश
20.मुनिसुव्रतकूर्म
21.नेमिनाथनीलकमल
22.अरिष्टनेमिशंख
23.पार्श्वनाथसर्प
24महावीर स्वामीसिंह

जैन साहित्य

  • जैन साहित्य किसी एक काल की रचना नहीं है। इसका संकलन भिन्न-भिन्न कालों में हुआ।
  • जैन साहित्य में जैन आगम सर्वोपरि है। आगम का अर्थ है सिद्धांत।
  • जैन आगम के अन्तर्गत 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 1 नंदिसूत्र 1 अनुयोगद्वार एवं 4 मूल सूत्र हैं।

अन्य प्रमुख ग्रंथ

  • आचारांगसूत्र-इसमें जैन भिक्षुओं के आचरण सम्बन्धी नियम संकलित हैं।
  • भगवती सूत्र- इसमें महावीर स्वामी के जीवन एवं क्रियाकलापों का वर्णन है।
  • नायाधम्मकथासूत्र-इसमें महावीर स्वामी की र स्वामी की शिक्षायें संकलित हैं।
  • अंतगणदसाओसुत्त-इसमें प्रमुख भिक्षुओं के निर्वाण प्राप्ति का वर्णन है। उपरोक्त सभी ग्रंथ प्राकृत अर्धमागधी भाषा में लिखे गये हैं।

यदि आप और अधिक अध्ययन सामग्री प्राप्त करना चाहते हैं तो कृपया हमारे चैनल से जुड़ें।

Leave a Comment

error: Content is protected !!