मौर्य वंश के बारे में जानकारी के कई स्रोत हैं-
(i) पुरातात्विक स्त्रोत : जूनागढ़ अभिलेख, साहगौर अभिलेख, अशोक के अभिलेख, भवन स्तूप एवं गुफा, मुद्रा (आहत/पंचमार्क), मृदभांड (काली पॉलिस वाले)।
(ii) विदेशी यात्री का विवरण: इण्डिका (मेगास्थनीज), आस्टिन और जस्टिन ।
(iii) साहित्यिक स्त्रोत : पुराण, अर्थशास्त्र, राजतरंगिणी, मुद्रा-राक्षस (विशाखदत्त), जैन तथा बौद्ध ग्रन्थ, कथा सरिता सागर, वृहत्तकथा मंजरी (जैन ग्रंथ), कल्पसूत्र।
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 – 298 ई.पू.)
- प्राचीन भारत का राजवंश जिसने 137 वर्ष तक भारत में राज्य किया। इसके स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य और उसके प्रधानमंत्री चाणक्य (कौटिल्य) को दिया जाता है। जिन्होंने नंद वंश के राजा घनानंद को पराजित किया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरू और प्रधानमंत्री चाणक्य थे।
- इन्होंने अपना राजधानी पाटलीपुत्र को बनाया।
- 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा।
- इनकी माता का नाम मोरा था। जिसका संस्कृत में अर्थ मौर्य होता है इसलिए इस वंश का नाम मौर्य वंश पड़ा।
- इनकी शिक्षा तक्षशिला में हुई थी।
- मौर्यकाल में शिक्षा का सबसे प्रसिद्ध केन्द्र तक्षशिला था।
- विशाखदत्त ने चंद्रगुप्त मौर्य के लिए बृषल का प्रयोग किया। (निम्न जाति) शब्द का प्रयोग किया ।
- विशाखदत्त की पुस्तक मुद्राराक्षस में नंद वंश के पतन तथा मौर्य वंश के उदय की चर्चा है।
- इनके अनुसार चाणक्य के सहयोग से चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द का अंत कर लिया और घनानंद की पुत्री दुर्धरा से विवाह कर लिया। चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण में कर्नाटक (मैसूर) तक तथा उत्तर-पश्चिम में इरान (फारस) से लेकर पूरब में बंगाल तक फैला था।
- जब चन्द्रगुप्त मौर्य जब मगध का शासक था। तब यूनानी आक्रमणकारी सेलयुकस निकेटर ने (305 ई.पू. में) आक्रमण कर दिया, किन्तु चन्द्रगुप्त मौर्य ने उसे पराजित कर दिया और उसकी बेटी कॉर्नेलिया (हेलेना) से विवाह कर लिया और दहेज में एरिया (हेरात), आराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (ब्लूचिस्तान) तथा पेरिपनिसडाई (काबुल) ले लिया।
- इस बात का उल्लेख एप्पियानस नामक यूनानी ही देता है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी सेल्युकस निकेटर को 500 हाथी उपहार में दिए थे।
- भारतीय इतिहास का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को कहा जाता है।
- सेल्युकस निकेटर ने अपना एक राजदूत मेगास्थनीज को चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा। यूनानी लेखक पाटलीपुत्र को पोलीब्रोथा कहते थे।
- मेगास्थनीज की पुस्तक इंडिका से मौर्य वंश की जानकारी मिलती है। इंडिका में लिखा है कि मौर्य काल में समाज 7 भागों में बंटा था- 1. दर्शनिक, 2. अहिर, 3. सैनिक, 4. किसान, 5. निरीक्षक, 6. कारीगर तथा 7. सभासद।
- इनमें से सर्वाधिक संख्या किसानों की थी तथा भारतीयों को लिखने में रूची नहीं थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने बंगाल अभियान भी किया था, जिसकी जानकारी माहस्थान अभिलेख से मिलती है।
- चंद्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विजय के बारे में जानकारी तमिलग्रंथ ‘अहनानूर’ एवं ‘मूरनानून’ तथा अशोक के अभिलेख से मिलती है।
- गोरखपुर में स्थित साहगौर ताम्र अभिलेख से अकाल के दौरान चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा किए गए राहत कार्यों की चर्चा है।
- जैन ग्रंथ रजावली में उल्लेख मिलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने पुत्र बिदुसार को गद्दी सौप दिया था।
- चन्द्रगुप्त मौर्य को जैन धर्म की शिक्षा भद्रबाहु के नेतृत्व से मिली थी। भद्रबाहु के साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में चला गया। जहाँ 298 ई.पू. संलेखना (संथारा) विधि से प्राण त्याग दिया।
- रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख (गिरनार) गुजरात से जानकारी मिलती है, कि चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुष्यगुप्त ने सरकारी खर्च से गुजरात के सौराष्ट्र में सुदर्शन झील बनवायी थी।
- इस अभिलेख ने चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चिमी विस्तार की जानकारी मिलती है।
- मौर्य वंश के बारे में सर्वाधिक जानकारी चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र से मिलती है। जो एक राजनैतिक एवं प्रशासनिक पुस्तक है। इस पुस्तक के 15 अधिकरण (Lesson) है। इस पुस्तक में राजा के राजत्व सिद्धांत की चर्चा है, और कहा गया है कि एक मजबूत राजा को सप्रांग सिद्धांत पालन करना होगा।
- शरीर के अंगों के समान राज्य के 7 अंग होते हैं। जो निम्नलिखित हैं-
- (i) राजा स्वामी शीर्ष (Head)
- (ii) मंत्री अमात्य आँख (Eye)
- (iii) जनपद क्षेत्र और जनसंख्या पैर (Leg)
- (iv) दुर्ग किला बांह (Arm)
- (v) कोष धन मुख (Mouth)
- (vi) दंड/सेना न्याय मस्तिष्क (Brain)
- (vii) मित्र सहयोगी कान (Ear)
- चाणक्य को विष्णुगुप्त या कौटिल्य भी कहते है। ये तक्षशिला के ब्राह्मण थे और तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे।
- महावंश टिका में उल्लेख मिलता है कि चाणक्य तक्षशिला के एक ब्राह्मण थे।
- चाणक्य को भारत का मैक्यावेली कहा जाता है।
- इसके पिता का नाम गुणी था।
- चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की है। इससे हमें मौर्य सम्राज्य के राजनितिक गतिविधि की जानकारी मिलती है।
- चाणक्य की बेइज्जती घनानन्द ने की थी। इसी के प्रतिशोध के लिए इन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य का सहारा लिया और घनानन्द का अंत कर दिया।
- लूटार्क ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए ऐटोंकोटस शब्द का प्रयोग किया है।
- जस्टिन ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए सेण्ड्रेकोटस शब्द का प्रयोग किया है।
- Willian Jones ने यह पहचान कराया कि सेण्ड्रेकोटस ही चन्द्रगुप्त मौर्य हैं।
- प्लूटार्क के अनुसार चंन्द्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख की सेना लेकर चाणक्य की सहायता से संपूर्ण भारत पर रौंद डाला था।
बिन्दुसार (298-269 BC)
- यह चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी था।
- इसके राज्य का संचालक चाणक्य करते थे।
- इसके पिता का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था।
- इसकी माता दुरधरा थी।
- इसके पत्नी का नाम चारूमित्रा और शुभद्रांगी थी।
- इसके पुत्र का नाम सुशीम, अशोक और तिष्य था।
- इसके दरबार में सीरिया के नरेश एण्टियोकस ने अपना राजदूत डायमेक्स को भेजा।
- इसे मेगास्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।
- स्ट्रैबो के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के नरेश से अंजीर मीठी शराब तथा दार्शनिक मांगा था।
- वहाँ के राजा एण्टिओकस प्रथम ने अंजीर तथा मीठी शराब दिया किन्तु दार्शनिक ने लेने से मना कर दिया क्योंकि सीरिया में दार्शनिक का व्यापार नहीं होता है।
- बिन्दुसार के दरबार में मिस्र के राजा फिलाडेल्फ ने अपना राजदूत डायनोसियास को भेजा।
- बिन्दुसार के समय तक्षशिला (कश्मीर) में दो बार विद्रोह हुए।
- उस समय तक्षशिला का राजकुमार बिन्दुसार का बड़ा बेटा सुशीम था, जो इस विद्रोह को दबाने में असफल रहा।
- बिन्दुसार ने अपने छोटे पुत्र अशोक, जो उस समय अवन्ति का राजपाल था, उसे विद्रोह दबाने के लिए तक्षशिला भेजा।
- अशोक ने क्रूरता पूर्वक विद्रोह को दबा दिया।
- बिन्दुसार आजीवक संप्रदाय को मानने वाला था। जिसके स्थापना मोखलीपुत्र गोशाल ने किया था।
- बिन्दुसार को अमित्रघात एवं शत्रुविनाशक भी कहते हैं।
- वायु पुराण में इसे भद्रसार भी कहा गया है।
- जैन धर्म में इसे सिंहसेन कहा जाता था।
- यह अपने शासनकाल में कोई नया प्रदेश नहीं जीता था।
- भारतीय इतिहास में इसको पिता का पुत्र और पुत्र का पिता की उपमा से जाना जाता है।
सम्राट अशोक (269-232 BC)
- इसका जन्म 304 ई.पू. पाटलीपुत्र में हुआ।
- इसके पिता का नाम बिन्दुसार तथा माता का नाम शुभद्रागी था। जिसे धर्मा के नाम से जाना जाता था।
- बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक ने राजा बनने के लिए अपने 99 भाईयों की हत्या करके एक कुआँ में डाल दी थी वह कुआँ आज भी पटना के अगमकुआँ नामक स्थान पर स्थित है।
- 269 ई.पू. में अशोक ने अपना राज्याभिषेक कराया।
- राज्याभिषेक के 8वें वर्ष अर्थात् 261 ई.पू. में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया तथा कलिंग के राजधानी तोशली पर अधिकार कर लिया।
- कलिंग आक्रमण की जानकारी खारवेल के हाथीगुफा अभिलेख से मिलती है।
- इस अभिलेख के अनुसार कलिंग आक्रमण के समय कलिंग का राजा नंद राज था।
- कलिंग में हुए भीषण नरसंहार को देखकर अशोक का हृदय परिवर्तित हो गया और अशोक ने युद्ध नीति का सदा के त्याग दिया और भैरिघोष के स्थान पर धम्मघोष की स्थापना किया।
- ऐसा माना जाता है कि अशोक ने हाथियों को प्राप्त करने के लिए कलिंग आक्रमण किया था।
- कलिंग आक्रमण के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।
- इसे बौद्ध धर्म अपनाने की प्रेरणा इसके भतीजे निग्रोथ से मिली जबकि बौद्ध धर्म की शिक्षा उपगुप्त ने दी थी।
- अशोक शुरूआत में ब्राह्मण धर्म मानता था। परंतु बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया।
- अशोक का बौद्ध धर्म उसका व्यक्तिगत धर्म था। उसने कभी भी बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं किया। किन्तु अशोक बौद्ध धर्म को संरक्षण देता था।
- अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने बेटे महेन्द्र एवं बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
अशोक द्वारा भेजे गए धर्मप्रचारक
धर्मप्रचारक | देश |
---|---|
महेन्द्र और संघमित्रा | श्रीलंका |
महाधर्मरक्षित | महाराष्ट्र |
सोना तथा उत्तरा | सुवर्ण भूमि |
महारक्षित | यवण देश |
महादेव | मैसूर |
मञ्झिम | हिमालयी क्षेत्र |
मञ्झान्तिक | काश्मीर एवं गंधार |
- बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष से ही धर्म यात्रा प्रारंभ की उसी यात्रा के क्रम इस प्रकार है- बोधगया, कुशीनगर, लुम्बनि नगर, कपिल वस्तु, शारनाथ, तथा श्रावस्ती।
- अशोक ने अपने शासन के दसवें वर्ष सर्वप्रथम बोध गया की यात्रा की। उसके बाद बीसवें वर्ष लुम्बनी नामक ग्राम गया और उसे कर मुक्त कर दिया तथा केवल 1/8 भाग ही कर लेने की घोषणा की।
- अशोक के काल में तीसरी बौद्ध संगीति 255 ई.पू. में पाटलीपुत्र में हुई थी। जिसका अध्यक्ष मोगलीपुतिस था।
- श्रीलंका के राजा ने सिंघली संप्रदाय को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक धार्मिक रूप से सहिष्णु था अर्थात् वह किसी भी धर्म के साथ भेद-भाव नहीं करता था।
- अशोक के समय मुद्राएं सोने (स्वर्ण), चाँदी (कार्षापण) एवं ताँबें (काकणी) आदि के होते थे।
- अशोक ने आजीवक संप्रदाय के लोगों को गया में स्थित बराबर की पहाड़ियों में 4 गुफा दान में दिया- (i) सुदामा, (ii) कर्ण, (iii) चोपाड़, (iv) विश्व झोपड़ी
- आजीवकों के लिए नागार्जुन गुफा दशरथ द्वारा प्रदान किया गया था। इसका उत्तराधिकारी कुणाल था।
- अशोक की 5 पत्नियाँ (असंधिता, देवी, करूआती, पदमावती, नित्यारक्षक) थी, जिसमें अशोक पर सर्वाधिक प्रभाव कारूवाकी का था।
- कारूवाकी के कहने पर ही अशोक ने युद्ध त्याग दिया था।
- कल्हण के पुस्तक राजतंरगिनी से पता चलता है कि उसका अधिकार काश्मीर पर भी था। अशोक ने काश्मीर में झेलम नदी के तट पर श्रीनगर की स्थापना किया तथा नेपाल में ललीतपतनम् / देवपतनम् नामक नगर बसाया था।
- अशोक भारत का पहला ऐसा शासक था, जिसने अपने संदेशों को अभिलेख के माध्यम से जनता तक पहुंचाया।
- अशोक को अभिलेख लिखने की प्रेरणा ईराक के राजा डेरियस (दारा) या दायबाहु से मिली।
- अशोक के अभिलेखों की भाषा प्रकृति थी, जिसे 4 लिपियों में लिखा गया था-
- (i) ब्राह्मी लिपी : यह सर्वाधिक भारत में मिले हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता था।
- (ii) खरोष्ठि लिपी : यह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में मिले हैं। इसे दाईं से बाईं ओर लिखा जाता था।
- (iii) अरमाइक लिपी : यह अफगानिस्तान से मिली हैं।
- (iv) ग्रीक लिपी : यह अफगानिस्तान के उत्तरी सीमा से मिली है।
- अशोक के शिलालेख को पहली बार टी. फेन्थैलर ने 1750 ई. में खोजा।
- अशोक के अभिलेख को पढ़ने और समझने की पहली सफलता 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को मिली।
- अशोक ने अपने अधिकतर अभिलेखों में अपना नाम देवनाम प्रियदर्शी (देवताओं का पसंद) लिखा है।
- मध्य प्रदेश के गुर्जरा तथा कर्नाटक की मास्की, नेदर तथा उद्गेलान अभिलेखों में अशोक का स्पष्ट नाम अशोक लिखा हुआ है।
- भाब्रु अभिलेख में अशोक के लिए मगध सम्राट नाम का प्रयोग हुआ।
- असम से अशोक की कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है। जिससे यह पता चलता है कि यह क्षेत्र अशोक के सम्राज्य से बाहर था।
- अशोक 84000 स्तूपों का निर्माण कराया था।
- अशोक के शिलालेखों को 3 भागों में बांटा गया है-
- (1) शिलालेख – इसे वृहदशिलालेख तथा लघुशिलालेख में विभाजित किया गया हैं।
- (2) स्तंभलेख – इसमें दीर्घ स्तम्भलेख एवं लघुस्तम्भलेख में विभाजीत किया गया है।
- (3) गुहालेख – ये गुफाओं में लिखे जाते थे।
अशोक के चतुर्दश शिलालेख
- प्रथम शिलालेख : इसमें अहिंसा पर बल दिया गया है और पशुबली पर रोक लगाया गया है। सभी मनुष्य मेरे बच्चे है।
- द्वितीय शिलालेख : इसमें पशु चिकित्सा की चर्चा है साथ ही दक्षिण भारतीय राज्य जैसे चेर, पाण्ड, श्रीलंका, केरलपुत्र, सतीयपुत्र की चर्चा है, किन्तु चोल वंश की चर्चा नहीं है।
- तृतीय शिलालेख : इसमें अशोक ने 3 अधिकार राजुक, युक्तक तथा प्रदेशक का चर्चा किया है। जो धम्म के प्रचार के लिए थे। अशोक ने इस शिलालेख में राजकीय अधिकारियों को आदेश जारी किया कि वे हर पांचवें वर्ष दौरे पर जाय। इसमें धर्म संबंधित कुछ नियम भी निर्देशित हैं।
- चतुर्थ शिलालेख : इसमें भैरिघोष (युद्ध) के स्थान पर धम्मघोष (बौद्ध) के नीति का चर्चा है।
- 5वाँ शिलालेख : इसमें धम्म महामात्र नामक अधिकारी की चर्चा है, जो धार्मिक जीवन की देख-रेख करता है। इसमें समाज तथा वर्ण व्यवस्था उल्लेख है।
- 6वाँ शिलालेख : इसमें अशोक ने कहा है कि मेरा अधिकारी जनकल्याण के लिए जब चाहे मुझसे मिल सकते हैं। इसमें आत्म नियंत्रण संबंधित शिक्षा दी गई है।
- 7वाँ शिलालेख : इसमें अशोक ने विभिन्न धर्मों के आपसी समन्वय की बात कही है। यह सबसे बड़ा शिलालेख है। इसमें तीर्थ यात्रा की चर्चा है।
- 8वाँ शिलालेख : इसमें अशोक के धम्म यात्रा की चर्चा है, जो इसके राजाभिषेक से 8वें वर्ष से प्रारंभ होती है।
राज्याभिषेक के 10वें वर्ष – गया
राज्याभिषेक के 20वें वर्ष – लुम्बिनी। - 9वाँ शिलालेख : इसमें अशोक ने छोटे-मोटे त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया। इस शिलालेख में सच्ची शिष्टाचार और सच्ची भेंट का उल्लेख है।
- 10वाँ शिलालेख : इसमें धम्म के महत्व के बारे में चर्चा है। इसमें सम्राट अशोक ने आदेश जारी किया कि राजा तथा उच्च राज्य अधिकारी हमेशा ही प्रजा के हित के बारे में सोंचे।
- 11वाँ शिलालेख : अशोक ने कहा है, कि मेरे अधिकारी ब्राह्माणों को न सताएं।
- 12वाँ शिलालेख : इसमें स्त्रियों के स्थिति में सुधार के लिए स्त्रीमहामात्रा नामक अधिकारी की चर्चा है एवं हर प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है।
- 13वाँ शिलालेख : इसमें कलिंग युद्ध की चर्चा है तथा साथ ही सम्राट अशोक के हृदय परिवर्तन की बात भी वर्णित है। साथ ही पड़ोसी राजाओं के संबंध का भी उल्लेख है।
- 14वाँ शिलालेख : अशोक ने कहा है, कि मैंने ऊपर लिखे गए शिलालेख के अतिरिक्त बहुत से काम किए हैं, जो इसमें नहीं लिखे गए हैं। इसके लिए लिखने वाला जिम्मेदार है, मैं नहीं।
शिलालेख | लिपि | स्थान | |
---|---|---|---|
1. | शाहबाजगढ़ी | खरोष्ठी | पेशावर (पाकिस्तान) |
2. | मनसेहरा | खरोष्ठी | हजारा जिला (पाकिस्तान) |
3. | सासाराम | ब्राह्मी | रोहतास जिला (बिहार, भारत) |
4. | धौली | ब्राह्मी | पुरी (उड़ीसा) |
5. | येरागुड़ी | ब्राह्मी | चितल दुर्ग (मैसूर) |
6. | पालिकगुण्डु | ब्राह्मी | आविमठ (कर्नाटक) |
7. | वैराट (भाबू) | ब्राह्मी | जयपुर (राजस्थान) |
8. | कलसी | ब्राह्मी | देहरादून (उत्तरांचल) |
9. | गिरिनार | ब्राह्मी | जूनागढ़ के पास काठियावाड़ (गुजरात) |
10. | धौली | ब्राह्मी | पुरी (उड़ीसा) |
11. | सोपारा | ब्राह्मी | थाने के पास (महाराष्ट्र) |
12. | जौगढ़ | ब्राह्मी | गंजाम जिला (उड़ीसा) |
13. | रूपनाथ | ब्राह्मी | जबलपुर (मध्य प्रदेश) |
14. | एर्रागुडी | ब्राह्मी | कुर्नूल (आन्ध्र प्रदेश) |
अशोक के स्तंभलेख (लघु अभिलेख)
- भाब्रू अभिलेख : राजस्थान के भाब्रू अभिलेख में अशोक ने खुद को मगध का सम्राट बताया है।
- भाब्रू अभिलेख में इसने बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध, धम्म और संघ की चर्चा है।
- अशोक के 7 स्तंभलेख (लघु अभिलेख) मिले हैं-
- (i) रूमनदेई अभिलेख : यह अफगानिस्तान के कांधार से मिलता है। जो आरमाईक लिपी में है। यह सबसे छोटा अभिलेख है। यह एक मात्र अभिलेख है जिसमें अशोक ने प्रशासनिक चर्चा न करके आर्थिक क्रियाकलाप की चर्चा की है।
- (ii) कौशाम्बिक अभिलेख (UP) : इसमें अशोक ने अपनी पत्नि कारूवाकी द्वारा दिए गए दान की चर्चा की है। अतः इसे रानी की अभिलेख कहते हैं। अकबर ने इसे इलाहाबाद स्थापित कर दिया। इसे रानी अभिलेख भी कहा जाता था।
- (iii ) टोपरा अभिलेख (हरियाणा): फिरोजशाह तुगलक ने इसे दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थापित करा दिया।
- (iv ) मेरठ अभिलेख (UP): पहले यह मेरठ में था। फिरोजशाह तुगलक ने इसे दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थापित कर दिया।
- (v) रामपूर्वा अभिलेख : यह बिहार के चंपारण में है। इसकी खोज 1872 ई. में कारलायल ने की।
- (vi) लौरिया नंदन गढ़: यह बिहार के चंपारण में है।
- (vii) लौरिया अरेराज : यह बिहार के चंपारण में है।
- (i) रूमनदेई अभिलेख : यह अफगानिस्तान के कांधार से मिलता है। जो आरमाईक लिपी में है। यह सबसे छोटा अभिलेख है। यह एक मात्र अभिलेख है जिसमें अशोक ने प्रशासनिक चर्चा न करके आर्थिक क्रियाकलाप की चर्चा की है।
- सर-ए-कुना अभिलेख : यह अफगानिस्तान के कांधार से मिला है। जो ग्रीक तथा अरमाईक भाषा में है।
- कलिंग अभिलेख में अशोक ने कहा है, कि संसार के सभी मानव मेरी संतान (पुत्र) हैं। मैं एक माँ की भांति उसके सांसारिक तथा प्रलौकिक जीवन की कामना करता हूँ। अशोक ने कहा है, कि जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे को योगाधाम को देकर निश्चित हो जाती है। उसी प्रकार मैं भी समाज की देख-रेख के लिए राजूक को नियुक्त किया है।
- राजूक अच्छे व्यक्ति को पुरस्कृत कर सकते हैं और गलत व्यक्ति को दंडित कर सकते हैं।
- अशोक के गुहालेखों की संख्या 3 हैं। जो बिहार में गया के निकट बराबर की पहाड़ी की गुफा में स्थित है। यहां 3 गुफाएं हैं। इनमें स्थित गुहालेखों में आजीवकों को दिए गए दान का उल्लेख मिलता है।
- अशोक को अभिलेख लिखने के लिए पत्थर (उत्तरप्रदेश) के चुनार से मिले हैं।
अशोक की धम्म यात्रा
- अशोक ने लोगों को नैतिकता सिखाने के लिए जो नियम कानून की संहिता बनाई उसे ही धम्म कहते हैं। अशोक का धम्म स्वनियंत्रण पर आधारित था।
- अशोक की धम की परिभाषा राहुलोवादसुत्र से ली गई है। अपने आप को नियंत्रित करना धम नीति का मूल सिद्धांत है।
- अशोक ने अपने दूसरे एवं सातवें स्तम्भ लेखों में धम के गुणों (सत्यवादीता, पवित्रता, साधुता, मृदुता, दान, दया, कल्याण) को बताया है।
- अशोक ने कहा है कि व्यक्ति अपने माता-पिता की आज्ञा मानें। व्यक्ति ब्राह्मण तथा भिक्षुक का आदर करें।
- व्यक्ति-दास तथा सेवकों के प्रति उदार रहें।
- व्यक्ति को जिओ-और-जिने-दो का पालन करना चाहिए।
मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था
- इस समय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि, पशुपालन तथा कारखाना था और शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र तक्षशिला था।
- सरकारी भूमि को सीता भूमि कहा जाता था।
- निजी भूमि को भाग कहा जाता था।
- बिना वर्षा के अच्छी खेती को आदेवमातृक कहा जाता था।
- इस समय भूमि का उत्पादन का 1/6 (कौटिल्य के अनुसार) या 1/4 (मेगास्थनीज के अनुसार) लिया जाता था।
- बिक्री कर मूल्य का 10वां भाग होता था।
- भूमि माप वाले कर को रज्जू कहा जाता था।
- धार्मिक कर को बलि कहा जाता था।
- चारागाह कर को विवीत कहा जाता था।
- अकाल के समय कोई कर नहीं लिया जाता था।
मौर्यकालीन मुद्राएँ
- मौर्यकाल के राजकीय मुद्रा पण थी। जो चांदी का सिक्का हुआ करता था।
- मुद्राओं का परीक्षण करने वाला अधिकारी को रूद्रदर्शक कहा जाता था।
- इस समय चांदी के मुद्रा को कार्षापण कहा जाता था।
- इस समय सोने के सिक्के को स्वर्ण एवं निष्क कहा जाता था।
- तांबे के सिक्के को इस समय माष्क या काकनी कहा जाता था।
मौर्यकालीन संगठन
(i) श्रेणी : यह शिल्पकारों का संगठन था।
(ii) निगम : यह व्यापारियों का संगठन था।
(iii) सार्थवाह: यह कारवां (काफिला) का संगठन था।
मौर्यकालीन सैन्य व्यवस्था
- मौर्य कालीन सैन्य व्यवस्था बहुत ही विशाल थी। इस समय स्थायी तथा अस्थायी दो प्रकार के सैनिक रहते थे।
- रूद्र क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करने वाला अधिकारी नायक होता था।
- मौर्यकाल की सेना नन्दों से 3 गुनी थी।
- कौटिल्य ने सेना को तीन श्रेणीयों में बांटा था- 1. पुश्तैनी सेना, 2. भाटक सेना, 3. नगरपालिका सेना।
- जस्टिन ने कहा है, कि मौर्य की सेना डाकुओं का एक गिरोह था।
- मेगास्थनीज के अनुसार सेना का रख-रखाव 6 समितियाँ जिसमें प्रत्येक में 5 सदस्य होते थे। उसके द्वारा किया जाता था।
प्रशासनिक व्यवस्था
- मौर्यकालीन प्रशासन एक केन्द्रीकृत शासन था। राजा को सलाह देने के लिए मंत्री परिषद् होते थे।
- उच्च अधिकारियों को तीर्थ या माहामात्रा कहा जाता था। इनकी संख्या 18 थी। जासूसों के लिए चर शब्द का प्रयोग हुआ था।
अर्थशास्त्र में उल्लेखित तीर्थ (शीर्षस्थ अधिकारी) | ||
1. | अमात्य | प्रधानमंत्री |
2. | पुरोहित | धर्म एवं दान विभाग का प्रधान |
3. | सेनापति | सैन्य विभाग का प्रधान |
4. | युवराज | राजपुत्र |
5. | दौवारिक | राजदरबार/राजकीय द्वार-रक्षक |
6. | अन्तर्वेदिक | अन्तःपुर का अध्यक्ष |
7. | समाहर्ता | आय का संग्रहकर्ता |
8. | सन्निधाता | राजकीय कोष का अध्यक्ष |
9. | प्रशास्ता | कारगार का अध्यक्ष |
10. | प्रदेष्ट्रि | कमिश्नर |
11. | पौर | नगर का कोतवाल |
12. | व्यावहारिक | प्रमुख न्यायाधीश |
13. | नायक | नगर रक्षा का अध्यक्ष |
14. | कर्मान्तिक | उद्योगों और कारखानों का अध्यक्ष |
15. | मन्त्रिपरिषद् | अध्यक्ष |
16. | दण्डपाल | सैन्य सामग्री एकत्रित करनेवाला |
17. | दुर्गपाल | राजकीय दुर्ग रक्षक |
18. | अंतपाल | सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक |
- मुख्यमंत्री और पुरोहित की नियुक्ति के पहले इनके चरित्र को जांचा या परखा जाता था उसे ही उपधा परीक्षण कहा जाता था।
- अशोक के समय प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। ग्रामों के मुखिया ग्रामिक कहलाते थे।
- प्रशासनिक अधिकारियों को अध्यक्ष कहा जाता था। इनकी संख्या 26 थी।
- (i) सिताध्यक्ष : कृषि विभाग
- (ii) अकाराध्यक्ष : खनन विभाग
- (iii) लक्ष्मणाध्यक्ष : मुद्रा विभाग
- (iv) राक्षिन : पुलिस विभाग
- (v) धर्मस्थली : दिवानी न्यायालय (धन)
- (vi) कन्टक : शौद्ध फौजदारी न्यायालय (अपराध)
- (vii) गुढ़ पुरुष : गुप्तचर
- (vii) संस्था : स्थाई गुप्तचर
- (ix) संचार : चलायमान गुप्तचर
- (x) आंटविक : जंगल का अधिकारी
- (xi) समाहारता : Tax या कर
- (xii) शनिधाता : कोषाध्यक्ष
- मेगास्थनिज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक मंडल चलाता था। यह मंडल 6 समितियों में विभक्त होता था। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
न्याय व्यवस्था
- मौर्य काल में सम्राट सर्वोच्च न्यायालय तथा अंतिम न्यायालय तथा न्यायधिश था। ग्राम सभा सबसे छोटा न्यायालय था। जहाँ वृद्ध जन अपने निर्णय लेते थे।
- सर्वोच्च न्यायालय राजधानी में स्थित होता था।
- मुख्य न्यायाधीश को धर्माधिकारी कहा जाता था। अर्थशास्त्र के अनुसार राज्य में दो प्रकार के न्यायालय होते थे।
- 1. धर्मस्थीय (दीवानी) – इसके द्वारा दिवानी तथा विवाह संबंधित विवादो का निपटारा किया जाता था।
- 2. कंटक शोधन (फौजदारी) – इसके द्वारा फौजदारी तथा मारपीट जैसे समस्याओं का निपटारा होता था।
- अशोक के काल में जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीशों को राजूक कहा जाता था।
- गुप्तचर व्यवस्था – मौर्य काल में गुप्तचर से संबंधित महामात्यासर कहा जाता था।
- अर्थशास्त्र में गुप्चरों को गुढ़पुरुष तथा इसके प्रमुख अधिकारी के सर्पमहामात्य कहा जाता था।
- संचार – इसमें जो व्यक्ति जगह-जगह जागकर गुप्तचरी करता था।
- संस्था – एक जगह संगठीत होकर गुप्तचरी करना।
- गुप्चतर के अलावा शांति व्यवस्था बनाये रखने तथा अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस भी थी। जिसे अर्थशास्त्र में आरक्षिण कहा गया है।
मौर्यकालीन वास्तुकला
- मौर्यकाल में लकड़ी के भवन हुआ करते थे, जो वर्तमान पटना के कुम्हरार से मिले हैं। मौर्यकाल में पत्थर के कुशल कारीगर होते थे।
- अशोक ने मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप बनवाया है। जो सबसे बड़ा स्तूप है।
- अशोक ने (UP) के सारनाथ में अशोक स्तंभ बनवाया। जिस पर 4 पत्थर के शेरों को एक ही जगह रखा। जो अहिंसा का सूचक हैं। यही भारत का राष्ट्रीय चिन्ह भी है।
- मौर्यकाल में पत्थर की बनी सबसे महत्वपूर्ण कलाकृति पटना के दीदारगंज से मिला यक्ष एवं याक्षिणी की मूर्ति है।
- अशोक के अभिलेख विभिन्न क्षेत्रों से मिले हैं, किन्तु पाटलिपुत्र से एक भी अभिलेख नहीं मिला है।
- स्तूप की संरचना – स्तूप एक अर्द्धवृत्ताकार संरचना जिसे अण्ड कहा जाता है। अण्ड के ऊपर एक छज्जे जैसे संरचना होती है। जिसे हर्मिका कहते हैं। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे ‘यष्टि’ कहते हैं। यष्टि पर तीन छत्रियाँ लगी होती थी। उपरोक्त संरचना के चारों तरफ घुमने के लिए प्रदक्षिणापथ होता है। इस संपूर्ण संरचना के चारों ओर एक वेदिका होती थी जहाँ तोरणद्वार (प्रवेश द्वार) बनाया जाता था।
- स्तूप के विभिन्न अंगों का अर्थ –
- 1. तोरण द्वार – स्तूपों के चारों ओर प्रवेश द्वार बने होते थे जो चारों दिशाओं में बुद्ध के संदेशों से फैलने का प्रतीक है।
- 2. वेदिका – स्तूपों के चारों तरफ एक घेरा बनाया जाता था जिसे वेदिका/रेलिंग कहा जाता था। जो पत्थरों के विभिन्न स्तरों/पट्टिकाओं का बना होता था। यह पवित्र भूमि का प्रतीक है, जो पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से अलग करती है।
- 3. ‘अण्ड’- ‘शांति’ का प्रतीक।
- 4. ‘हार्मिका’ – देवताओं के घर अथवा पवित्रता का प्रतीक है।
- 5. ‘छत्र’- बुद्ध के विचारों/भिक्षाओं का प्रतीक है। जैसे- श्रद्धा, सम्मान एवं उदारता।
सामाजिक जीवन
- अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया किन्तु यह दूसरे धर्मों का भी आदर करता था। हिन्दु धर्म त्यागने के बाद भी अशोक ने अपने नाम में देवनाम प्रियदर्शी जोड़ा, जो संस्कृत भाषा का है।
- अशोक ने 11वें शिलालेख में आदेश दिया है, कि ब्राह्मणों को कोई नहीं सताए।
- अशोक ने आजीवक संप्रदाय के भक्तों को गया कि 4 गुफा दे दिया।
- अशोक ने पशुबली पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया। यज्ञ तथा कर्मकांड पर रोक लगा दिया जिस कारण ब्राह्मणों की आय में बहुत कमी आ गई।
- मौर्य काल में दास का प्रचलन था।
- इस समय स्त्रियों कि स्थिति अच्छी थी। स्त्रियाँ पुर्नविवाह कर सकती थी। इस समय जो विधवा स्वतंत्रत रूप से जीवन यापन करती थी उसे क्षन्द वासीनी कहा जाता था।
- स्वतंत्रत रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली महिला रूपजीवा कहलाती थी। इनके कार्यों का देख-रेख गणिकाध्यक्ष करते थे।
- इस समय तलाक को मोक्ष कहा जाता था।
- इस वंश में प्रथम बार लोगों के जन्म एवं मृत्यु का पंजीयन किया गया था।
- इस काल का सर्वश्रेष्ठ नमूना स्तंभ है।
- इस काल में पाटलिपुत्र नगर को विश्व के नगरों की रानी कहा गया है।
- इस समय महल मुख्यतः लकड़ी का बना हुआ था।
- इस काल में एग्रोनोमाई सड़क निर्माण अधिकारी को कहा जाता था।
- परिष्टि पर्वन जैन ग्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य के जैन धर्म अपनाने का वर्णन मिलता है।
- इस काल का राजकोषिय वर्ष आषाढ़ (जुलाई) में आरंभ होता था।
प्रशासनिक ढाँचा
मौर्यकाल में सबसे बड़ा पद राजा का होता था, उसके नीचे युवराज होते थे।
प्रांत का शासन प्रांतपति के पास था।
विष (जिला), विषपति के नियंत्रण में रहता थां
10 गांवों का छोटा मालिक या गोप होता था। जो सबसे प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव हुआ करती थी। जो ग्रामीण (मुखिया) के नियंत्रण में रहती थी।
इस समय न्यायाधीश को राजूक कहा जाता था।
मौर्यकाल में प्रांतों की संख्या 4 थी, लेकिन अशोक के समय 5 हो गई, जो निम्नलिखित हैं-
अशोककालीन मौर्य साम्राज्य के 5 प्रांत | |||
प्रांत/चक्र | राजधानी | प्रमुख स्थल | |
1. | कलिंग | तोसली (धौली) | कलिंग |
2. | अवंति राष्ट्र | उज्जयिनी | मालवा, राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़ |
3. | प्राशी (पूर्वी प्रांत) | पाटलिपुत्र | बिहार बंगाल के और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र |
4. | उत्तरापथ | तक्षशिला | गांधार, कंबोज, पंजाब, कश्मीर और अफगानिस्तान |
5. | दक्षिणापथ | सुवर्णगिरि | विन्ध्य के दक्षिण का क्षेत्र |
- इसके समय प्रांतों को चक्र कहकर संबोधित किया जाता था।
- प्रांतों के प्रशासकों को कुमार या आर्यपुत्र अथवा राष्ट्रिक कहा जाता था।
- प्रांतों के विभाजन विषय में होता था। जो विषयपति के अधीन होता था।
Note : श्रीलंका का राजा अशोक के उपदेशों का पालन करते थे, किन्तु श्रीलंका अशोक के अधीन नहीं था।
अशोक के उत्तराधिकारी
- 232 ई.पू. (BC) पाटलीपुत्र में अशोक की मृत्यु हो गई।
- इसके बाद मगध की गद्दी पर अशोक का पुत्र कुणाल बैठा।
- अशोक के पौत्र दशरथ ने आठ वर्षों तक शासन किया। अशोक की भांति उन्होंने देवनामप्रिय की उपाधि धारण किया तथा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के लिए गया जिले में नागार्जुन पहाड़ी पर 3 गुफाओं का निर्माण कराया।
- अशोक का कोई भी उत्तराधिकारी योग्य नहीं था। मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहदथ था। जो एक कमजोर तथा अयोग्य शासक था।
- इसके शासन काल में कलिंग नरेश खारवेल ने कलिंग को मगध से स्वतंत्र कर लिया।
- वृहदथ का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था जिसने सेना के निरिक्षण के दौरान वृहदथ की हत्या कर दी और मौर्य वंश के स्थान पर शुंग वंश की स्थापना कर दी।
मौर्य वंश के पतन के कारण
- अशोक का युद्ध नीति त्याग देना।
- अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति अत्यधिक झुकाव होना।
- अशोक ने बौद्ध भिक्षुकों को इतना दान दिया कि आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया।
- पतन का सबसे बड़ा कारण अशोक के उतराधिकारी का आयोग्य होना था। साथ ही विभिन्न अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए।
- Note : मौर्यकाल में वर्ष की शुरूआत आषाढ़ (जुलाई) महीनें से होती थी।
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