इतिहास का वह समय जिसमें मानव लिखना पढ़ना नहीं जानता था। यह मानव विकास का वह काल है जिस काल में मनुष्य ने लिपि का आविष्कार नहीं किया था। इसकी जानकारी केवल पुरातात्विक साक्ष्य से मिली है।
इसके अंतर्गत हम पाषाण काल (पुरापाषाण काल, मद्य पाषाण काल तथा नव पाषाण काल) का अध्ययन करते हैं।
पाषाण काल (Stone Age)
- वह समय जब मानव पत्थर के औजार एवं हथियार को उपयोग करता था, पाषाण काल कहलाता है।
- भारत में सर्वप्रथम 1863 ई० में रार्बट ब्रुस फुट ने पाषाणकालीन सभ्यता की खोज की।
- राबर्ट ब्रूस फुट (भू-वैज्ञानिक) ने पहला पुरा पाषाण कालीन उपकरण मद्रास के पास पल्लवरम् नामक स्थान से प्राप्त किया था।
- भारतीय पुरातत्व का पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम है।
- भारत का पुरातात्विक संग्रहालय इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय है जो संस्कृति मंत्रालय के अधीन है।
- मिलने वाले धातु के आधार पर नामकरण क्रिश्चयन थॉमस ने किया।
- लिखावट के आधार पर नामकरण जॉन ब्रूस ने किया।
- पाषाण काल को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन कालों में विभाजित किया गया है।
1. पुरा पाषाण काल (5 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू.)
2. मध्य पाषाण काल (10 हजार ई.पू. से 7 हजार ई.पू.)
3. नवपाषाण काल (9हजार ई.पू (विश्व) व 7 हजार ई.पू. (भारत) से 3 हजार ई.पू)
पुरा पाषाण काल (Paleolithic Period)
- इस काल में मानव फलों का संग्रह शिकार मछली पकड़ना तथा भोजन का संग्रहण करता था।
- इस काल में मानव की जीविका का मुख्य आधार आखेट (शिकार) था।
- इस समय का मानव खानाबदोश (खाद्य संग्राहक) अर्थात् उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य जानवरों की भाँति ही अपना पेट भरना था।
- इस समय के मानव की सबसे बड़ी उपलब्धी आग की खोज थी।
- इस काल के मनुष्य के शारीरिक अवशेष प्राप्त नहीं हुए है।
- इस समय के मनुष्य नेग्रीटो जाति के थे।
- भारत में पुरापाषाण युगीन सभ्यता का विकास प्लाइस्टोसीन युग से हुआ।
- मध्यप्रदेश के भीमबेटका की गुफाओं में इस काल के बने चित्र प्राप्त होते है।
- इसी काल में होमोसेपियन्स (ज्ञानी मानव) का उदय हुआ।
- यह इतिहास का सबसे प्रारम्भिक समय था। इस समय के मानव को आदि मानव कहा जाता है।
- इस समय मानव पत्थर के बड़े-बड़े औजारों का इस्तेमाल शिकार करने के लिए करते थे। इसी समय मानव ने चित्रकारी करना प्रारंभ किया।
- भिमबेटका के गुफाओं में पुरा पाषाण काल के चित्र देखने को मिलते हैं। जो मध्यप्रदेश के अब्दुलागंज (रायसेन) में स्थित है।
- भारतीय पुरापाषाण काल को मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरूप एवं जलवायु मे होने वाले परिवर्तनों के आधार पर 3 अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है –
(1) निम्नपुरापाषाण काल
(2) मध्यपुरापाषाण काल
(3) उच्चपुरापाषाण काल
1. निम्नपुरापाषाण काल
- इस काल में मानव जीवन अस्थिर था । शिकार करके वह अपना भोजन संग्रह करता था।
- इस काल के उपकरणों में हैंड ऐक्स, चापर-चापिंग एवं पेबुल उपकरण मुख्य थे।
- भारत की निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति को दो वर्गों में विभाजित किया गया है।
(1) चापर-चापिंग पेबुल संस्कृति (उत्तर की संस्कृति)
यह संस्कृति पाकिस्तान के पंजाब में सोहन नदी घाटी में सर्वप्रथम प्रकाश में आयी। अतः इसे सोहन संस्कृति या सोहन उद्योग के नाम से जाना जाता है।
(2) हैंड ऐक्स संस्कृति (दक्षिण की संस्कृति)
- इस संस्कृति का मुख्य उपकरण हैंड ऐक्स है। इसे एश्यूलन संस्कृति के नाम से जाना जाता है।
- इस संस्कृति के उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के निकट अत्तिरमपम्कम् से प्राप्त हुए हैं। इसीलिए इसे मद्रासी संस्कृति या मद्रासी उद्योग के नाम से जाना जाता है।
2. मध्यपुरापाषाण काल
- इस काल में पत्थर के फलक की सहायता से उपकरणों का निर्माण किया गया।
- अतः इस काल को फलक संस्कृति के नाम से जाना जाता है।
- इस काल में स्क्रेपर (खुरचनी) बेधक, बेधनियां आदि उपकरण बनाये गये।
- गंगाघाटी, असम, सिक्किम एवं केरल को छोड़कर सम्पूर्ण भारत से इस संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- इस काल में जैस्पर, चर्ट तथा पिलेट के पत्थर प्रयुक्त होने लगे, जिनसे बने उपकरण क्लीवर, स्क्रेपर प्वांइट, व्यूरिन आदि।
- पत्थर को तोड़ कर फलक नामक औजार बनाया गया।
- इसलिए सांकलिया महोदय ने इसे फलक संस्कृति की संज्ञा दी।
- इस संस्कृति का प्रारूप स्थल महाराष्ट्र में स्थित नेवासा माना गया है।
3. उच्च पुरापाषाण काल
- इसी काल में सर्वप्रथम होमोसेपियंस (ज्ञानी मानव) का उदय हुआ।
- इस काल के प्रमुख उपकरणों में तक्षनी, चाकू, स्क्रेपर, बेधक एवं बेधनियां हैं। तक्षनी इस काल का विशिष्ट उपकरण है।
- इलाहाबाद जिले में बेलनघाटी में स्थित लोंहदा नाला से हड्डी की बनी नारी (मातृदेवी) की मूर्ति मिली है। जो कौशाम्बी संग्रालय में रखी हुई है।
- इसी काल का मानव पहली बार रहने के लिए गुफाओं का प्रयोग करना प्रारम्भ किया।
- भीमबेटका (म.प्र.) की पहाड़ियों से इस काल की गुफायें प्राप्त हुई हैं जिनका प्रयोग रहने के लिए किया जाता था।
- इस काल के उपकरण ब्लेड थे।
- इस काल में चकमक पत्थर उद्योग की स्थापना हुयी, मानव संभवतः आग से परिचित हुआ।
- इस काल को ब्लेड-व्यूरिन संस्कृति भी कहते है।
- इसी काल का मानव सर्वप्रथम चित्रकारी करना प्रारम्भकिया। नक्काशी तथा चित्रकारी दोनों कलाओं का इस काल में विकास हुआ। भीमबेटका की गुफाओं से इस काल के बने चित्र प्राप्त होते हैं।
- note – पुरापाषाणकालीन मनुष्य द्वारा की गई चित्रकारी तथा निवास के साक्ष्य म.प्र. के रायसेन जिले के भीमबैठका नामक स्थान से प्राप्त होती है, जिसकी खोज 1958 में विष्णु श्रीवाकणकर द्वारा की गई।
- भीमबैठका से ताम्रपाषाण काल से लेकर रैतिहासिक काल तक के चित्र प्राप्त होते है।
मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period)
- इस समय जलवायु गर्म हो गई, अब बर्फ की जगह घास से भरे मैदान उगने प्रारम्भ हो गए।
- इस काल का मानव अब पशुपालन करना भी प्रारम्भ कर दिया।
- पशुपालन का प्रथम साक्ष्य (प्राचीनतम साक्ष्य) म.प्र. के होशंगाबाद जिले के आदमगढ़ तथा राजस्थान के बागोर से प्राप्त होता है। जिसका समय 5000 ई.पू. था।
- इसी काल में मानव के अस्थिपंजर का सबसे पहला अवशेष उत्तर प्रदेश के सराय नाहर तथा महदहां (प्रतापगढ़) नामक स्थान से प्राप्त हुआ। इसे भारत में मानव कंकाल का प्रथम (सबसे प्राचीन) साक्ष्य माना जाता है।
- इस समय पत्थर के उपकरणों में तीर का जो नोक बनाया गया वह इस युग का विशिष्ट उपकरण है जिन्हें सुक्ष्म पाषाण उपकरण (माइक्रोलिथ) कहा गया। इस काल में मानव ने तीर-कमान का आविष्कार किया।
- इस काल के अन्य उपकरणों में इकधार फलक, बेधक बेधनी, चाकू, तक्ष्णी एवं अर्धचन्द्राकार प्रमुख है।
- इसी काल में सर्वप्रथम मानव कंकाल प्राप्त होते हैं।
- इस काल की सबसे पहले जानकारी सी.एल. कार्लाइल ने दी. उन्होने 1857 में विंध्य क्षेत्र से पहला लघुपाषाण उपकरण प्राप्त किया।
- इस काल में छोटे पत्थरों के औजार बनाए गये थे इसलिए इसे लघु पाषाण काल या माइक्रोलिथिक एज कहा जाता है।
- इस काल में मानव ने अंत्येष्टि संस्कार (अंतिम संस्कार) प्रारंभ किया।
- इस काल में व्यक्ति ने पशुपालन प्रारंभ किया।
- सर्वप्रथम कुत्ते को पाला गया था।
- Note – उ.प्र. के सराय नाहरराय से मानव कंकाल तथा महदहा से स्त्री पुरुष को एक साथ दफनाने के साक्ष्य प्राप्त हुए।
(a.) महदहा – प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश) हड्डी के उपकरणों के साक्ष्य
(b.) दमदमा – प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश)
(c.) सरायनाहरराय – प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश) मानव युद्ध के प्रथम साक्ष्य और अंत्येष्टी संस्कार का साक्ष्य - इस काल के बारे में सर्वप्रथम जानकारी करसाइल ने 1867 ई० में दिया।
नव या उत्तर पाषाण काल (Neolithic Period)
- इस काल से संबंधित पुरातात्विक खोज डॉ. प्राइम रोज ने शुरू की।
- उन्होने 1842 में कर्नाटक के लिंगसुंगुर नामक स्थान से उपकरण खोजे।
- बाद में 1860 में ली मेसुरियर ने उत्तरप्रदेश की टॉस नदी घाटी से उपकरण प्राप्त किए।
- इस काल में कृषि की खोज की गयी।
- पाकिस्तान के बलुचिस्तान प्रांत के मेहरगढ़ नामक स्थान से कृषि (गेंहू एवं जौ) के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है।
- Note नवीन खोजो के अनुसार कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य उत्तरप्रदेश के लहुरादेव से प्राप्त हुआ है, जो 8 हजार – 9 हजार ई. पूर्व पूराना है।
- इलाहाबाद के कोल्डीहवा नामक स्थान से चावल या धान के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है।
- स्थाई जीवन तथा बस्तियों का निर्माण प्रारंभ हुआ।
- कृषि उत्पादों को रखने के लिए मिट्टी के वर्तन बनाए गए
- इस काल में पहियें और आग का आविष्कार किया गया, तथा मनका (घड़ा) की खोज की।
- कश्मीर के बुर्जहोम नामक स्थान से मानव के साथ कुत्ते को दफनाने तथा गतीवास के साक्ष्य प्राप्त हुए।
- बुर्जाहोम संस्कृति के लोग गड्ढे वाले मकानों में रहते थे।
- कश्मीर के गुपकराल से भी गतीवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- कश्मीर में जिस नवपाषाण काल का विकास हुआ उसे कश्मीरी नवपाषाण संस्कृति के नाम से जाना जाता है।
- इसी काल में कर्नाटक के संगनकल्लू तथा पीकलीहल से राख के टीले मिले है।
- बिहार के चिरांद नामक स्थान से हड्डी के उपकरण (हिरण के सिंहो से निर्मित) प्राप्त हुए।
- सर्वप्रथम इसी काल में कुंभकारी दृष्टिगोचर होती है।
- कालक्रम के अनुसार यह युग काफी छोटा है, फिर भी सारे क्रान्तिकारी परिवर्तन इसी युग में हुए हैं।
- विश्व स्तर पर इस संस्कृति का प्रारम्भ 9000 ई.पू. में पश्चिम एशिया में हुआ।
- पश्चिम एशिया के मानव को जौ, गेहूँ, दलहन, तिलहन, आदि के रूप में महत्वपूर्ण खाद्यान्न प्रदान किया।
- यहां की प्राचीनतम नव पाषाण युगीन बस्ती मेहरगढ़ (पाकिस्तान) है। कृषि का सबसे पहला और स्पष्ट प्रमाण यहीं से मिला तथा इस जगह के मानव ने 7000 ई. पू. में कृषि उत्पादन प्रारम्भ कर दिया था।
- इसी तरह भारत में कोलडिहवा नामक स्थान से चावल उगाने का प्राचीन साक्ष्य प्राप्त होता है, इसका समय भी 5000 ई.पू. के लगभग आता है।
- नव पाषाण काल में मानव ने स्थायी आवास बना लिया था। स्थिर वासी लोग खेती से परिचित हो गए थे, साथ ही कृषि तथा पशुपालन भी प्रारम्भ कर दिया।
- इसलिए खाने-पीने के बर्तनों की इन्हें जरूरत हुई अतः कुम्भकारी सबसे पहले इसी काल में दिखाई दी।
- पशुपालन का साक्ष्य भारत में आदमगढ़ (MP) तथा बागौर (राजस्थान) से प्राप्त हुआ है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- विश्व के प्राचीनतम मृद्भांड बेलनघाटी में स्थित चोपानी मांडो से प्राप्त हुए हैं।
ताम्र-पाषाण काल (Chalcolithic Period)
- यह पाषाण काल का अंतिम समय था। इस समय तांबे की खोज हुई थी। मानव पत्थर के उपकरणों के साथ-साथ तांबे के उपकरणों का प्रयोग करना प्रारम्भ किया, जिस कारण औद्योगिकरण शुरू हो गया। इसी औद्योगिकीकरण का विकसित रूप सिंधु सभ्यता में देखने को मिलता है।
- मानव द्वारा खोजी गई पहली धातु तांबा थी।
- नवदाटोली मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण ताम्रपाषाणिक पुरास्थल है जिसकी उत्खनन H.D. संकालीया ने कराया था।
- सर्वाधिक पूर्व सैंधव ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियां बलूचिस्तान से प्राप्त हुई हैं।
- ताम्र-पाषाण काल को कैल्कोलिथिक युग भी कहा जाता है।
- गैरिक मृदभांड पात्र का नामकरण हस्तिनापुर से प्राप्त मृदभांडों के आधार पर किया गया है।
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