आधुनिक भारत के उत्तर मुगल काल और उत्तर मुगल काल के शासक से संबंधित सामान्य अध्ययन ।
भूमिका
मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ईस्वी में पानीपत के युद्ध के पश्चात बाबर ने की थी परंतु बाबर और हिमायू इसे स्थायित्व नहीं दे पाए। अकबर ने मुगल साम्राज्य को सुदृढ़ता से स्थापित किया और साम्राज्य का विस्तार किया। औरंगजेब के काल में मुगल साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर पहुंच परंतु औरंगजेब की नीतियों ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक रूप से मुगल साम्राज्य की छवि को हानि पहुंचाई। औरंगजेब की नीतियों जैसे – धार्मिक, राजपूत, सिख, मराठा एवं दक्कन ने संपूर्ण मुगल साम्राज्य में विद्रोह की स्थिति को जन्म दिया।
1707 में जब औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर महाराष्ट्र में हुई तब मुगल साम्राज्य आंतरिक रूप से संघर्ष से गुजर रहा था।
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात उनके तीन पुत्रों के बीच उत्तराधिकार का युद्ध शुरू हो गया – मुअज्जम, आजम और कमबख्स के बीच ।
- उत्तराधिकार के इस युद्ध में मुअज्जम ने अपने भाइयों को पराजित करके हिंदुस्तान का सिंहासन प्राप्त किया
- उत्तराधिकार का यह युद्ध आगरा के जाजौ नामक स्थान पर लड़ा गया।
- इस युद्ध में मुअज्जम ने आजम को पराजित कर दिया।
उत्तर मुगल काल के शासक (1707-1857)
शासक | शासन काल |
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बहादुरशाह प्रथम | 1707 से 1712 ई. (5 वर्ष) |
जहाँदारशाह | 1712 से 1713 ई. (1 वर्ष) |
फ़र्रुख़सियर | 1713 से 1719 ई. (6 वर्ष) |
मुहम्मदशाह (रौशन अख़्तर) | 1719 से 1748 ई. (29 वर्ष) |
अहमदशाह | 1748 से 1754 ई. (6 वर्ष) |
आलमगीर द्वितीय | 1754 से 1759 ई. (5 वर्ष) |
शाहआलम द्वितीय | 1759 से 1806 ई. (47 वर्ष) |
अकबर द्वितीय | 1806 से 1837 ई. (31 वर्ष) |
बहादुरशाह द्वितीय | 1837 से 1857 ई. (20 वर्ष) |
बहादुर शाह प्रथम (1707 – 1712)
- बहादुर शाह प्रथम औरंगजेब के पुत्र और उत्तराधिकारी थे।
- बहादुर शाह प्रथम अर्थात मुअज्जम उत्तर मुगल काल का प्रथम शासक बना।
- इन्होंने शाह आलम की उपाधि धारण की थी।
- इन्होंने अपने पिता और औरंगजेब की सभी नीतियों को परावर्तित कर दिया जैसे की धार्मिक नीति दक्कन की नीति राजपूत नीति मराठा नीति एवं सिख नीति ।
मराठा नीति
- औरंगजेब ने संभाजी की हत्या करा कर उसके पुत्र साहू को कैद कर लिया था बहादुर शाह प्रथम ने औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात उसे कैद से स्वतंत्र कर दिया
- इस प्रकार बहादुर शाह प्रथम ने मैराठों के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित किया।
सिख नीति
- बहादुर शाह प्रथम ने सिखों के साथ भी शांतिपूर्ण संबंध स्थापित किया
- इन्होंने (बहादुर शाह प्रथम ने) : 10वीं सिख गुरु – गुरु गोविंद सिंह को 5000 का मनसव प्रदान किया।
- गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु थे।
- गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी ।
- खालसा पंथ के अंतर्गत गुरु गोविंद सिंह ने सिख अनुयायियों को पांच चीज रखने की अनुमति दी – केश, कड़ा, कंघा, किरपान, कच्छा।
- गुरु गोविंद सिंह दसवें पादशाह का ग्रंथ भी संकलित करवाया था
- गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 1708 ईस्वी में हो गई।
- गुरु पद की समाप्ति हो गई।
राजपूत नीति
- बहादुर शाह प्रथम ने राजपूतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।
- इनके काल में दो प्रमुख राजपूत शासक राजा थे आमेर (जयपुर) के राजा जय सिंह और मारवाड़ (जोधपुर) के राजा अजीत सिंह इनके साथ भी बहादुर शाह प्रथम ने अच्छे नीति का अनुसरण किया।
धार्मिक नीति
- बहादुर शाह प्रथम ने औरंगजेब के धार्मिक नीति को भी परिवर्तित कर दिया
- इन्होंने जजिया कर एवं तीर्थ यात्रा कर को लेना बंद कर दिया और हिंदू मंदिर को तोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया।
- बहादुर शाह प्रथम के बारे में इतिहासकार “सर सिडनी ओवन” कहते हैं की “अंतिम मुगल सम्राट है जिसके बारे में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं” ।
- काफी खां इन्हे “शाह -ए – बेखबर” कहां है
- 1712 में लौहगढ़ के युद्ध में बहादुर शाह प्रथम ने सिखों के नेता बंदा बहादुर को पराजित कर दिया परंतु ये घायल हो गए और 1712 में ही इनकी मृत्यु हो गई।
जहांदारशाह (1712-1713)
- बहादुर शाह प्रथम के मृत्यु के बाद इसके चार पुत्रों के बीच उत्तराधिकार का युद्ध शुरु हो गया – अजीम-उस-शान, रफ़ी-उस-शान, जहानशान और जहांदारशाह के बीच।
- इस उत्तराधिकार के युद्ध में जहांदारशाह ने अपने भाइयों को पराजित करके सिंहासन प्राप्त किया।
- सिंहासन प्राप्त करने में जहांदारशाह को ईरानी अमीर – जुल्फिकार खां ने सहायता प्रदान की थी।
- इन्होंने जुल्फिकार खां को अपना वजीर घोषित किया था।
- जुल्फिकार खां ने जागीरो के अंधाधुंध बंटवारे पर रोक लगा दी थी।
- जहांदारशाह एक अयोग्य शासक था और उसे लम्पट-मूर्ख के नाम से जाना जाता था।
- जहांदारशाह के शासनकाल में दो प्रसिद्ध राजपूत शासक थे –
आमेर (जयपुर) के राजा जय सिंह और मारवाड़ (जोधपुर) के राजा अजीत सिंह । - राजा जय सिंह ने सवाई राजा का उपाधि धारण की थी और राजा अजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि धारण की थी।
- जहांदारशाह को उनकी महिला मित्र लाल कुंवर (लाल कुमारी) प्रभावित करती थी और जहांदारशाह ने लाल कुमारी को शासन में हस्तक्षेप करने का आदेश दे रखा था।
फर्रुखशियर (1713-1719)
- फर्रुखशियर 1713 में सैयद बन्धु की सहायता से सिंहासन पर बैठा था।
- सैयद बन्धु – हुसैन अली खां और अब्दुल्ला खां दो भाई थे ।
- फर्रुखशियर को घृणित कायर के नाम से भी जाना जाता था ।
- इस काल में सैयद बन्धु को शासक निर्माता या King maker’s के नाम से जाता था ।
- फर्रुखशियर ने सैयद बन्धु : हुसैन अली खां को मीरबक्शी और अब्दुल्ला खां को वजीर नियुक्त किया था ।
- सैयद बंधु ने मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ से दिल्ली की संधि की थी ।
इस संधि के अनुसार मराठा पेशवा ने सैयद बंधु को आश्वासन दिया कि वह दरवारी षड्यंत्र में सैयद बन्धु का सहयोग करेंगे - फर्रुखशियर ने 1717 में बंगाल में मुक्त व्यापार करने के लिए दस्तक का अधिकार ब्रिटिशों को दे दिया।
- दस्तक वास्तव में बंगाल में मुक्त व्यापार करने का एक परमिट था।
- फर्रुखशियर ने दस्तक के अधिकार को एक अंग्रेज अधिकारी जॉन सुरमन को दिया था।
- अपने शासन के अंतिम दिनों में फर्रुखशियर और सैयद बन्धु में मतभेद होने लगे जिसके फल स्वरुप सैयद बंधु ने 1719 में फर्रुखशियर की हत्या कर दी।
मुहम्मदशाह (1719 – 1748)
- मुहम्मदशाह का वास्तविक नाम रोशन अख्तर था।
- 1719 में सैयद बांधों की सहायता से ये सिंहासन पर बैठे।
- ज्यादा समय हरम में बिताने के कारण इतिहासकारों ने इन्हे रंगीला की संज्ञा दी है।
- इन्होंने 1720 में जजियाँ कर को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।
- इन्हीं के काल में सैयद बंधु के खिलाफ षड्यंत्र की शुरुआत हुई।
- 1720-22 में तू रानी अमीर नेता निजाम उल मुल्क ने सैयद बंधुओं की हत्या करवा दी।
- (तुरानी सैनिक हैदर बेग में 9 अक्टूबर 1720 ई को सैयद बंधु हुसैन अली खां की हत्या कर दी।)
- इसके पश्चात मुहम्मदशाह ने निजाम-उल-मुल्क को अपना वजीर घोषित किया।
- कुछ समय पश्चात निजाम-उल-मुल्क के खिलाफ भी षड्यंत्र होने लगा जिसकी पहचान निजाम उल मुल्क दक्षिण भारत में हैदराबाद की स्थापना की (1724) ।
- निजाम उल मुल्क को 6 मुगल पप्रांतों का गवर्नर दक्षिण भारत में नियुक्त किया गया था।
- निजाम-उल-मुल्क को चिंकिलिच खां नाम से भी जाना जाता है
मुहम्मदशाह के शासनकाल में ही बहुत से राज्य स्वतंत्र होने लगे :
अवध | 1720 (सादात खां) |
बंगाल | 1722 (मुर्शिद कुली खां) |
कर्नाटक | 1720-22 (सादुतुल्ला खां) |
हैदराबाद | 1724 (निजाम-उल-मुल्क) |
जाट साम्राज्य | 1730-40 (बदन सिंह और चुरामन) |
नादिर शाह का आक्रमण
- मोहम्मद शाह के शासनकाल में 1739 में ईरानी आक्रमणकारी नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया।
- नादिर शाह को ईरान का नेपोलियन भी कहा जाता है।
- फरवरी 1739 में करनाल का युद्ध नादिर शाह और मुगल सेना के बीच लड़ा गया।
- इस युद्ध में मुगल सेनापति निजाम उल मुल्क, खान ए दोरा एवं सादत खां थे।
- नादिर शाह ने करनाल के युद्ध में मुगल सेना को पराजित कर दिया।
- निजाम उल मुल्क ने नादिर शाह को 50 लख रुपए देकर वापस जाने के लिए मना लिया ।
- तभी सादात खां नादिर शाह को दिल्ली जाकर बादशाह को बंदी बनाने का सुझाव दिया।
- नादिरशाह दिल्ली 57 दिन तक रहा उसने दिल्ली के हर घर को लूट।
- नादिर शाह ने दिल्ली स्कूल 70 करोड रुपए की लूट की ।
- वह ईरान जाते समय अपने साथ 70 करोड रुपैया, कोहिनूर हीरा, मयूर सिंहासन और जिजमुहम्मद शाही नामक ग्रंथ भी ले गया।
- मुहम्मदशाह अंतिम मुगल बादशाह था जो मुगल सिंहासन पर बैठा था।
- उल्लेखनीय है कि नादिर शाह के आक्रमण ने मुगल साम्राज्य को आर्थिक रूप से ओखला कर दिया।
- 1739 में नादिर शाह वापस ईरान लौट गया और उसने अपने राज्य में 8 साल तक कोई कर नहीं लिया।
- 1747 में नादिर शाह की मृत्यु हो गई।
- 1748 में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई।
अहमदशाह (1748 से 1754)
- मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अहमद शाह हिंदुस्तान की गद्दी पर बैठा।
- 1748 में अहमद शाह ने अहमद शाह अब्दाली को सफदरजंग की सहायता से पराजित किया था।
- अहमद शाह अब्दाली, नादिर शाह का उत्तराधिकारी था।
- नादिर शाह ने अहमद शाह अब्दाली को दुर्रे – दुरानी, युग का मोती जैसे उपाधि से नवाजा था।
- 1748 में शासक बनने के पश्चात अहमदशाह ने सफदरजंग को अपना वजीर नियुक्त किया था।
- सफदरजंग अवध का एक बहुत योग्य नवाब था।
आलमगीर द्वितीय 1754 से 1759
- आलमगीर द्वितीय 1754 में इमाद उल मुल्क की सहायता से गद्दी पर बैठा।
- आलमगीर द्वितीय ने इमाद उल मुल्क को अपना वजीर घोषित किया था ।
- आलमगीर द्वितीय के काल में ही 1757 में प्लासी का निर्णायक युद्ध लड़ा गया।
- 1759 में उनकी हत्या कर दी गई और अगले शासक: शाहआलम द्वितीय गद्दी पर बैठे।
शाह आलम द्वितीय (1759 से 1806)
शाहआलम द्वितीय का वास्तविक नाम अली गौहर था।
शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में दो महत्वपूर्ण युद्ध लड़े गए
1. पानीपत का तीसरा युद्ध 1761
1761 का पानीपत युद्ध : अहमदशाह अब्दाली और मराठो के बीच लड़ा गया।
शाह आलम द्वितीय प्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध से नहीं जुड़े हुए थे।
2. बक्सर का युद्ध 1764
- 1764 में बक्सर के युद्ध में शाह आलम द्वितीय ने भी भाग लिया था।
- इस युद्ध में शाह आलम द्वितीय की हार हुई।
- शाहआलम द्वितीय ने 1764 में हुए ऐतिहासिक महत्व के बक्सर युद्ध में मीर कासिम तथा अवध के नवाब सुजाउ द्धौला के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
- 1765 में शाह आलम द्वितीय ने रॉबर्ट क्लाइव के साथ इलाहाबाद की संधि कर ली ।
- इस संधि में शाह आलम द्वितीय ने ब्रिटिशों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार दे दियें।
- बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित होने के बाद शाहआलम द्वितीय को 1765 में हुई इलाहाबाद की संधि के प्रावधानों के अनुरूप कई वर्षों तक अंग्रेजों का पेंशन भोगी बनकर रहना पड़ा।
- 1803 में ब्रिटिशों (अंग्रेजों) ने शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में ही दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
- 1806 में शाह आलम द्वितीय की मृत्यु हो गई।
अकबर द्वितीय (1806 से 1837)
- अकबर द्वितीय शाह आलम द्वितीय के उत्तराधिकारी थे।
- उनके शासनकाल में मुगलों की प्रतिष्ठा एवं संपन्नता में भारी गिरावट आई।
- 1835 में इन्हीं के शासनकाल में मुगल सिक्कों का प्रचलन प्रतिबंधित कर दिया।
- अकबर द्वितीय ब्रिटिशों की पेंशनर शासक थे।
- इन्होंने राजा राममोहन रॉय को राजा की उपाधि दी थी।
- 1829 में इन्होंने ही राजा राममोहन राय को अपनी पेंशन में वृद्धि के लिए ब्रिटेन भेजा था।
- और यही 1833 में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई।
- 1837 तक आते-आते मुगल बादशाह की बादशाहत केवल लाल किले तक सिमट कर रह गई।
बहादुरशाह द्वितीय (1837 से 1857)
- बहादुर शाह द्वितीय को जफर के नाम से भी जाना जाता है
- बहादुर शाह जफर मुगल वंश के अंतिम शासक थे।
- बहादुर शाह जफर मुगल वंश के अंतिम शासक थे।
- बहादुर शाह भी ब्रिटिशों के पेंशनर थे।
- ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने 1848 में बहादुर शाह जफर को लाल किला छोड़ देने का आदेश दिया।
- और उन्होंने कुछ समय कुतुब मीनार के परिसर में बिताया।
- ये उर्दू भाषा में जफर के नाम से शेरो शायरी लिखते थे।
- महान उर्दू शायर मिर्जा गालिब इनके समकालीन थे
- बहादुर शाह जफर ने 1857 की क्रांति में भाग लिया था। और
यह दिल्ली से विद्रोह का नेतृत्व कर रहे थे। - हड़सन नमक ब्रिटिश अधिकारी ने 1857 की क्रांति को दिल्ली में दबाया।
- इस विद्रोह के बाद जफर को रंगून निर्वासित कर दिया गया।
- 1862 रंगून म्यांमार में ही उनकी मृत्यु हो गई।
- बहादुर शाह जफर की मजार पर उनका एक प्रसिद्ध शेर लिखा गया है –
“कितना है बदनसीब ज़फ़र दफन के लिए दो गज जमीन भी ना मिली कू-यार-मे”
मुगलों के पतन का कारण
- मुगलों के पतन के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है कुछ इतिहासकार जैसे कि यदुनाथ सरकार औरंगजेब की नीतियों को मुगल साम्राज्य के पतन का कारण मानते हैं।
परंतु सतीश चंद्र “मुगलों के पतन को उसकी दीर्घावधि का परिणाम मानते हैं - उत्तर मुगल शासक अत्यधिक अयोग्य थे।
- उत्तर मुगल काल में दरबारी संघर्ष की शुरुआत हुई जिससे साम्राज्य की स्थिरता प्रभावित हुई।
- औरंगजेब की धार्मिक, राजपूत, दक्कन, और सिख नीति भी मुगलों के पतन का कारण बनी।
- प्रारंभ से ही मुगल साम्राज्य में उत्तराधिकार नियम स्पष्ट नहीं था।
- वाह्य आक्रमणों ने भी मुगल साम्राज्य की स्थिति बेहद कमजोर कर दी जैसे नादिरशाह का आक्रमण, अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण, ब्रिटिशो का प्रभाव।